________________
२०६ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [तृ० खण्ड
ऐशो-आराम से रहने के लिए बढ़िया वस्त्रों की आवश्यकता होती थी। आचरांग में वस्त्रों की प्राचीन सूची दी हुई है । जंगिय अथवा जांघिक ( ऊन से बने कम्बल आदि ), भंगिय, साणिय (सन से बने हुए), पोत्तग (ताड़ आदि के पात्रों से बने हुए ), खोमिय' ( कपास के बने) और तूलकड" नामक वस्त्रों का यहाँ उल्लेख मिलता है । विधान है कि जैन भिक्षु अथवा भिक्षुणी जरूरत पड़ने पर इन वस्त्रों को माँग सकते हैं। __निम्नलिखित वस्त्रों की गणना बहुमूल्य वस्त्रों में की जाती थी,
और जैन भिक्षुओं को उनके धारण करने का निषेध था:-आईणर्ग (अजिन; पशुओं की खाल से बने हुए वस्त्र), सहिण (सूक्ष्म; बारीक बने हुए वस्त्र), सहिणकल्लाण (सूक्ष्मकल्याण; बारीक और सुन्दर वस्त्र ), आय (आज; बकरे के बालों के वस्त्र),
१. २, ५. १. ३६४, ३६८, तथा मिलिन्दप्रश्न, पृ० २६७ ।
२. भांगेय का उल्लेख मूलसर्वास्तिवाद के विनयवस्तु में भी मिलता है, पृ०६२ । यह वस्त्र भाग वृक्ष के तंतुओं से बनाया जाता था; अभी भी उत्तर प्रदेश के कुमाऊँ जिले में इसका प्रचार है और इसे भागेला नाम से कहा जाता है, डाक्टर मोतीचन्द, भारती विद्या, १, भाग १, पृ० ४१ ।
३. पोतमेव पोतकं कार्पासिक, बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति, २. ३६६० । - ४. महावग्ग ८.६. १४ पृ० २६८ में खोम, कप्पासिक, कोसेय्य, कंबल, साण और भंग नामके छह चीवरों का उल्लेख है। देखिए गिरजाप्रसन्न मजूमदार का लेख, इन्डियन कल्चर, १, १-४, पृ० १६६, आदि ।
५. बृहत्कल्पसूत्र २. २४; तथा स्थानांग, ५. ४४६ में तूलकड़ के स्थान पर तिरीडपट्ट का उल्लेख है, जो तिरीड वृक्ष की छाल से बनाया जाता था। तथा देखिए मूलसर्वास्तिवाद का विनयवस्तु, पृ० ६४;। महावग्ग २ चीवर स्कन्धक, तीसरा प्रकरण । मोनियर विलियम्स ने अपने कोश में तिरोड का अर्थ शिरोवस्त्र किया है।
६. देखिए महावग्ग ५. १०.२१ पृ० २११ । उन दिनों शेर, चीता, तेन्दुश्रा, गाय और हरिण की खाल के वस्त्र बनाये जाते थे।
७. निशीथसत्र ७. १२ की चूर्णी में कहा है कि तोसलि देश में बकरों के खुरों में लगी हुई शैवाल से वस्त्र बनाये जाते थे। लेकिन इस कथन का कोई प्रमाण नहीं मिला।