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________________ तृ० खण्ड ] चौथा अध्याय : उपभोग २०१ अनेक प्रकार के मत्स्य,' बकरे, मेंढ़े, सूअर, हरिण, तीतर, मुर्गे, मोर आदि पशु-पक्षियों को मारकर मंमवाते, उनके छोटे-बड़े और गोल टुकड़े करते, मढे, आंवले, मृद्वीका, दाडिमआदि में भूनकर तैयार करते, उनसे मत्स्यरस, तित्तिररस, मयूररस आदि बनाते और फिर भोजन-मंडप में प्रतीक्षा करते हुए राजा को परोसते । जहाँ माँस सुखाया जाता उस स्थान को मंसखल कहा गया है। सूर्यप्रज्ञप्ति में उल्लेख है कि अमुक नक्षत्र में चासय, मृग, चीता ( दीवग ), मेंढक, नखवाले जन्तु, वराह, तीतर और जलचर जीवों का मांस भक्षण करने से सिद्धि प्राप्त होती है। इसके सिवाय, संखडियों (भोज) का उल्लेख मिलता है जहाँ जीवों को मारकर उनके मांस को अतिथियों को परोसा जाता था। इस प्रकार की संखड़ियों में जैन भिक्षु या भिक्षुणी को सम्मिलित होने का निषेध था। उत्तराध्ययनसूत्र में अरिष्टनेमि की कथा आती है। जब वे अपनी बारात लेकर राजा उग्रसेन को कन्या राजीमती को ब्याहने जा रहे थे तो रास्ते में पशुओं का करुण शब्द सुनकर उन्होंने अपने सारथि से इस सम्बन्ध में प्रश्न किया । सारथि ने उत्तर दिया, महाराज! आपके बरातियों को खिलाने के लिये मारे जाने वाले पशुओं का यह चीत्कार है। यह सुनकर अरिष्टनेमि को वैराग्य उत्पन्न हो गया और संसार का त्याग कर उन्होंने श्रमण दीक्षा धारण की। राजगृह के श्रमणोपासक महाशतक की पत्नी रेवती मांस-भक्षण में अत्यन्त आसक्त रहती थी । वह सुरा, मधु, मैरेय, मद्य, सोधु और प्रसन्ना का भक्षण कर प्रसन्न होती, तथा अपने पीहर के गोकुल में से प्रातः १. मत्स्यों के प्रकारों में खवल्ल, विज्झडिय, हलि, लंभण, पडागाइपडाग आदि का उल्लेख है, वही, ८, पृ० ४६ ।। २. भूनने की अन्य विधियों में हिमपक्क, सीयपक्क, जम्मपक्क, वेगपक्क, वायुपक्क, मारुयपक्क, काल, हेरंग, महिह आदि का उल्लेख है, वही। ३. वही । तथा देखिये निशीथभाष्य १५.४८४३ की चूर्णी । ४. निशीथसूत्र ११.८० । ५. ५१, पृ० १५१ । . . ६. आचारांग, २, १.३.२४५ । ७. २२.१४ आदि ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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