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________________ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [ तृ० खण्ड २ कलिका, दुग्धजाति, प्रसन्ना तल्लक ( नेल्लक अथवा मेल्लग), शतायु, खर्जूरसार, मृद्वीकासार, कापिशायन, अ सुपक्व और इक्षुसार नाम की शराबों के नाम पाये जाते हैं । इसमें से अधिकांश शराबों के नाम उनके रंगों पर से रक्खे गये हैं । बहुत-सी शराबें विविध प्रकार के फलों के रस से तैयार की जाती थीं । शतायु नाम की शराब में बार पानी मिला देने पर भी उसका असर कम नहीं होता था । " मांसभक्षण २०० ४ मद्यपान की भांति मांसभक्षण का भी रिवाज था । शिकारी, चिड़ीमार, कसाई और मच्छीमारों का व्यापार जोरों से चलता था तथा वे अनेक प्रकार का मांस, मत्स्य और शोरवा तैयार करके बेचा करते थे। मांस तलकर ( तलिय ), भूजकर ( भज्जिय), सुखाकर ( परिसुक्क ) और नमक मिलाकर ( लवण ) तैयार किया जाता था । राजा के यहाँ काम करने वाले रसोइयों का उल्लेख है जो अनेक मच्छीमार, चिड़ीमार और शिकारी आदि को भोजन - वेतन देकर १. १२ आढक आटा ( पिष्ट) और ५ प्रस्थ किण्व में जातिसंभार तथा पुत्र की छाल और उसके फल मिश्रित करने से प्रसन्ना तैयार होती है, वही; अर्थशास्त्र २.२५.४२.१७, पृ० १३२ । २. इसे खजूर से तैयार करते थे । पकी हुई खजूर में कठहल, अदरक और सोमलता का रस मिश्रित करने से खर्जूरसार तैयार की जाती है । ३. इसका उल्लेख बृहत्कल्पभाष्य २.३४०८ में मिलता है । यह दुर्लभ शराबों में गिनी जाती थी । ४. यह गन्ने के रस से बनती थी। इसमें काली मिर्च, बेर, दही और नमक मिश्रित किये जाते थे । अरिष्ट और पकरस आदि मद्यों के लिए देखिये चरकसंहिता, १.२७, १८० आदि, पृ० ३४० - ४१ । ५. या शतवारान् शोधितापि स्वस्वरूपं न जहाति, जीवाभिगम ३, २६५, पृ० १४५-अ टोका; तथा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सूत्र २० टीका, पृ० ९९ आदि; प्रज्ञापना १७, ४.४५ पृ० ११०४ आदि । चेल्लणा रानी अपने केशों को शता से भिगोकर कारागृह में राजा श्रेणिक से मिलने जाती थी, और वहाँ अपने केशों को धोकर श्रेणिक को उस जल का पान कराती थी, आवश्यकचूर्णी - २, पृ० १७१ । मद्यों के प्रकार के लिये देखिये सुश्रुत १.४५. ९७२ - १९५ । ६. विपाकसूत्र २, पृ० १४; ३, पृ० २२ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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