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तृ० खण्ड ] चौथा अध्याय : उपभोग
१६६ के सिवाय गुड़ आदि के द्वारा बनी हुई शराब को सौवीरविकट, (मद्य ) कहा गया है। इसके सिवाय, गौडी (गुड़ से बनायो हुई; इसे मेरक अथवा सीधु भी कहा है ), पैष्टी (जौ अथवा चावल के आटे से बनायो हुई; इसे वारुणी भी कहा है ),3 वांशी (बांस के अंकुरों से बनाई हुई ), फलसुरा (ताड़, द्राक्षा और खजूर आदि से बनाई हुई ; इसे प्रसन्ना अथवा सौवीर भी कहा गया है), तालफल ( ताड़ से बनायी हुई ), और जाति (जाति पुष्प से बनाई हुई) शराबों के नाम उल्लिखित हैं ।
तत्पश्चात् प्रज्ञापना आदि सूत्रों में चन्द्रप्रभा, मणिशलाका, वरसोधु, वरवारुणी, आसव, मधु, मेरक, रिष्टाभ अथवा जंबूफल
१. वही, २.३४१२ आदि।
२. इसे आधे उबाले हुए चावल, जौ, काली मिर्च, नींबू का रस, अदरक और गर्म पानी से तैयार किया जाता था। चावल और जौ को पहले दो दिन तक गर्म पानी में भिगोया जाता, फिर उसमें दूसरी चीजें मिलायी जाती । उसमें से खमीर निकलता और फिर उसकी भाप से शराब तैयार की जाती। सुरा का उल्लेख वैदिक साहित्य में मिलता है, देखिये वैदिक इनडेक्स, २, पृ० ४५८ । सम्मोहविनोदिनी, पृ० ३८१ में पाँच प्रकार की सुरा बतायी गयी है:-पिठिसुरा, पूवसुरा, ओदन्तसुरा, किण्णपक्खित्ता और संभारसंयुत्ता।
३. सुरा और वारुणी के नाम पड़ने के कारण के लिये देखिये कुंभजातक (५१२), ५, पृ० ९८ आदि ।
४. बृहत्कल्पभाष्य २.३४१२ ।
५. ताड़ के पके फल से यह शराब बनती है, इसमें दन्ति और ककुभ की । पात्तयाँ डाली जाती हैं, आर० एल० मित्र, इंडो-आर्यन, १, पृ० ४१२ ।
६. विपाकसूत्र २, पृ० १४ ।
७. अर्थशास्त्र, २५.२.४२.१९, पृ० २७० के अनुसार, १०० पल कापत्थ, ५०० पल फाणित ( राब), और १ प्रस्थ मधु को मिश्रित करने से आसव तैयार होता था।
८. द्राक्षा के रस को मधु ( अंगूरी शराब) कहा जाता है, वही, पृ० २७१; तथा देखिये आर० एल० मित्र, वही, १, पृ० ४११ ।
९. मेषशृंगी के काढ़े में गुड़, लम्बी मिर्च, काली मिर्च और त्रिफला के चूर्ण को मिश्रित करने से मैरेय तैयार की जाती है, वहीं । इसे गौड़ी भी कहा जाता है, वहो, पृ० ४१२ ।