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________________ तृ० खण्ड] चौथा अध्याय : उपभोग १६७. से लीप-पोतकर उसपर कमल के पत्ते बिछाये जाते, और पुष्प बिखेरे जाते । उसके बाद करोडय ( कटोरा), कट्ठोरग और मंकुय आदि पात्र यथा-स्थान रक्खे जाते । तत्पश्चात् लोग भोजन करने बैठते। महानसशाला में अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य आदि विविध प्रकार के भोजन तैयार होते, तथा साधु-सन्तों, अनाथों, भिखारियां आदि को बांटे जाते । प्रपा में राहगीरों और परिव्राजकों को यथेष्ट अन्नपान दिया जाता। . मदिरापान ___ मद्य और मांस की गिनती श्रेष्ठ भोजनों में की जाती थी। प्राचीन समाज में मद्यपान सर्वसामान्य था। कौटिल्य के अनुसार, उत्सव, मेले और यात्रा आदि के अवसर पर चार दिन तक शराब बनाने का अधिकार था । जैनसूत्रों में १८ प्रकार के व्यंजनों में मद्य और मांस का उल्लेख है, यह बात कही जा चुकी है। शराब बड़े परिमाण में तैयार की जाती थी, और खपत भी इसकी बहुत थी । मद्यशालाओं ( पाणागार; कप्पसाला) में तरह-तरह की शराब बनाकर बेची जाती थी । रसवाणिज्य (शराब का व्यापार) का पन्द्रह कर्मादानों में उल्लेख किया गया है। महाराष्ट्र में रिवाज था कि शराब की दुकानों (रसापण) पर ध्वजा लगी रहती थी। ज्ञातृधर्मकथा में उल्लेख है कि द्रौपदी के स्वयंवर पर राजा द्रुपद ने विविध प्रकार की सुरा, मद्य, सीधु, प्रसन्ना और मांस आदि के द्वारा राजा-महाराजाओं का सत्कार किया । द्वारका (बारवई) के राज. १. निशीथचूर्णी पीठिका, पृ० ५१ । २. निशीथसूत्र ९.७; ज्ञातृधर्मकथा १३, पृ० १४३ । ३. उत्तराध्ययनटीका १३, पृ० १८८ । ४. अर्थशास्त्र, २.२५.४२.३६, पृ० २७३ । रामायण, २.९१.५१; ५.३६.४१; ७.४२.२१ आदि । तथा मांस ओदन के लिये देखिये महाभारत, १.७७.१३ आदि; १.१७४.१३ आदि; १.१७७.१० आदि; २.४.८ आदि; धम्मपद अट्ठकथा ३, पृ० १००; सुरापानजातकं (८१), १, पृ० ४७१; आर० एल० मित्र, इण्डो-आर्यन, १, पृ० ३९६ आदि । ५. निशीथभाष्य, ९.२५३५; व्यवहारभाष्य १०. ४८५। ... ६. बृहत्कल्पभाष्य २.३५३९ । ७. १६, पृ० १७९ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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