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________________ १६४ जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज [तृ• खण्ड ( पूय ) और श्रीखण्ड (शिखरिणी) के नाम मिलते हैं। मोदक लोगों का प्रिय खाद्य पदार्थ था। नये चावलों को दूध में डालकर खीर पकाई जाती थी। खीर में घी और मधु डालकर उसे स्वादिष्ट बनाया जाता था। लोग सत्त में घी डालकर खाते थे ।' नमक बनाने का काम बहुत महत्त्वपूर्ण था। नमक के अनेक प्रकारों का उल्लेख मिलता है-सौवर्चल, सैन्धव, लवण, रोम (खानों से निकाला हुआ), समुद्र, पांसुखार (मिट्टी से बनाया हुआ) और काला नमक ( कालालोण)६ । जिस देश में नमक उपलब्ध न होता वहाँ क्षारभूमि को मिट्टी ( ऊस ) काम में ली जाती थी। __ इसके अतिरिक्त, ओदन, सेम (कुल्माष) और सत्तु का भी उल्लेख किया गया है। निम्नलिखित १८ प्रकार के व्यंजनों के नाम मिलते हैं :-सूप, ओदन (चावल), यव (जौ), तोन प्रकार के मांस (जलचर, थलचर और नभचर जीवों के), गोरस, जूस (मूंग आदि का रसा), भक्ष्य (खंडखाद्य; जिसमें मिश्री का उपयोग बहुतायत से किया गया हो), गुललावणिया (गुजराती में गोलपापड़ी), मूलफल, हरियग (जोरा आदि), शाक, रसालू ( राजा के योग्य बनाया हुआ भोजन, जिसे दो पल घी, एक पल शहद, आधा आढक दही, बीस दाने काली मिर्च, और दसपल खंडगुड़ डालकर तैयार किया जाता है ), पान (मदिरा), पानीय (पानी), पानक (द्राक्षासव), शाक (मट्ठा डालकर बनाये हुए दहीबड़े आदि )। ये सब व्यंजन हांडी में पकाकर १. श्राचारांग २,१.४.२४७; तथा बृहत्कल्पभाष्य २.३४७५ आदि । २. आवश्यकचूर्णी, पृ० ३५६ । ३. वही पृ० २८३ । कुडुक्क के लोग खीर को पीलु कहते थे, वही पृ० २७ । ४. वही, पृ० २८८ । ५. निशोथभाष्य १४.४५१५ । ६. दशवैकालिकसूत्र ३.८; तथा चरकसंहिता १,२७.३०२-६, पृ० ३५६६०; सुश्रुत १.४६.३१३ । ७. निशीथसूत्र ११.६१ । ८. आवश्यक चूणी २, पृ० ३१७ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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