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________________ १८७ तृ० खण्ड ] तीसरा अध्याय : विनिमय आपणगृह के चारों ओर दुकानें बनी रहती थीं । अन्तरापण के एक ओर या दोनों ओर बाजार को वोथियां रहती थीं।' पणियय में पण या बाजी लगाकर लोग घत खेलते थे। किसी बनिये ने शर्त लगाई कि जो कोई माघ के महीने में रात भर पानी में बैठा रहेगा, उसे एक हजार इनाम मिलेगा। मूल्य वस्तुओं की कीमतें निश्चित नहीं थीं। यातायात के मन्द होने से उत्पादन पर एक ही व्यक्ति का अधिकार होने से, तथा उत्पादन के साधनों के बहुत पुरातन होने से माल की पूर्ति जल्दी नहीं होती थी। लेने-बेचने में मिलावट (प्रतिरूपकव्यवहार )3 और बेईमानी चलती थी। मायावी मित्र अपने सीधे-साधे मित्रों को ठग लेते थे।" मुद्रा कीमतें रुपये-पैसे के रूप में निर्धारित थीं, और रुपया-पैसा भारत में बहुत प्राचीन काल से विनिमय का माध्यम था। जैनसूत्रों में अनेक प्रकार की मुद्राओं एवं सिक्कों का उल्लेख है। सुनार ( हैरण्यक ) अंधेरे में भी खोटे सिक्कों को पहचान सकते थे। उपासकदशा में हिरण्य सुवर्ण का एक साथ उल्लेख है; वैसे सुवणे का नाम अलग से भी आता है। अन्य मुद्राओं में कार्षापण (काहावण), १. बृहत्कल्पभाष्य १.२३०१ श्रादि । २. आवश्यकचूर्णी पृ० ५२३ । ३. उपासकदशा १, पृ० १० । ४. उत्तराध्ययनटीका ४, पृ०८१-१; तथा आवश्यकचूर्णी पृ० ११७ । ५. अावश्यकचूर्णी पृ० १२८ । ६. आवश्यकटीका (हरिभद्र), ६४७, पृ० ४२०-श्र; तथा सम्मोहविनोदिनी, पृ०६१ श्रादि । ७. १, पृ० ६। ८. निशीथसूत्र ५.३५; आवश्यकटीका ( हरिभद्र ) पृ० ६४-श्र। ६. उत्तराध्ययनटीका ७, पृ० ११८ ।। उत्तराध्ययनसत्र २०.४२ में खोटे (कूट ) कार्षापण का उल्लेख है। कार्षापण राजा बिम्बसार के समय से राजगृह में प्रचलित था। अपने संघ के नियम बनाते समय बुद्ध ने इसे स्टैण्डर्ड रूप में स्वीकार किया था, समन्तपासादिका, २, पृ० २६७ । यह सोने, चाँदी और ताम्बे का होता था।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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