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जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज [तृ० खण्ड
व्यापार के केन्द्र नगर चम्पा नगरी के बाजार (विवणि ) शिल्पियों से आकीर्ण रहा करते थे।' यहाँ कितनी ही दुकानें थीं जिनपर विविध प्रकार की एक से एक उपयोगो वस्तुएँ बिकती थीं। कर्मान्तशाला ( कम्मंतसाला ) में उस्तरे आदि पर धार लगायो जाती थी। पाणागार (रसावण= रसापण ) में शराब बेची जाती थी। इसी प्रकार चक्रिकाशाला में तेल, गोलियशाला में गुड़, गोणियशाला में गाय, दोसियशाला में दूष्य ( वस्त्र ), सोत्तियशाला में सूत, और गंधियशाला में सुगन्धित पदार्थ बेचे जाते थे। हलवाई की दुकानों को पोइअ कहा गया है। यहाँ अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थ मिलते थे।' कुम्हारों की शालाओं में पणितशाला (जहाँ कुम्हार अपने बर्तन बेचते हैं ), भांडशाला ( जहाँ बर्तन सुरक्षित रूप में रक्खे जाते हैं), कर्मशाला (जहाँ कुम्हार बर्तन बनाता है ), पचनशाला (जहाँ वर्षा में बर्तन पकाये जाते हैं ), और ईंधनशाला ( जहाँ तृण, कंडे आदि रहते हैं ) का उल्लेख मिलता है।" इसके सिवाय, महानसशाला (जहाँ विविध प्रकार के भोजन तैयार किये जाते हों), गन्धर्वशाला, गंजशाला, रजकशाला, पाटहिकशाला, चट्टशाला, तथा मंत्रशाला, गुह्यशाला, रहस्यशाला, मैथुनशाला, आदि के नाम गिनाये गये हैं। पाटलिपुत्र में देशदेशान्तर से आये हुए कुंकुम आदि के पुट खोले जाते थे (पुटभेदनक)।
१. औपपातिकसूत्र १। २. निशीथसूत्र ८.५-६ और चूर्णी । . ३. वही। ४. निशीथचूर्णी १०.३०४७ चूर्णी । ५. वही, ८.५-६ की चूर्णी ।
६. कुण्डग्राम के राजा नंदिवर्धन ने देश-देश में अनेक महानसशालायें स्थापित की थी, आवश्यकचूर्णी पृ० २५० ।
७. निशीथचूर्णी, ६.७; व्यवहारभाष्य ६, पृ० ५।
८. निशीथसूत्र ८.५-६, १६, ६-७ । हेमचन्द्र प्राचार्य ने अभिधानचिंतामणि में अनेक शालाओं का उल्लेख किया है।
६. बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति १०६३; तथा परमत्थदीपिका, उदान-अटकथा पृ० ४२२ ।