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________________ १८८ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [तृ० खण्ड मास, अद्धमास, (अर्धमास), और रूपक का उल्लेख है।' खोटे रूपकों का चलन था। पण्णग और पायंक' मुद्राओं का उल्लेख मिलता है। उत्तराध्ययनसूत्र में सुवण्णमासय (सुवणेमाषक ) का नाम आता है;" इसको गिनती छोटे सिक्कों में की जाती थी। ___ बृहत्कल्पभाष्य और उसकी वृत्ति में अनेक मुद्राओं का उल्लेख है। सबसे पहले कौड़ी (कवडग) का नाम आता है। तांबे के सिक्कों में काकिणी का उल्लेख है, जो सम्भवतः सबसे छोटा सिक्का था और दक्षिणापथ में प्रचलित था। चांदी के सिक्कों में द्रम्म का नाम आता है और भिल्लमाल (भिनमाल, जिला जोधपुर) में यह सिक्का प्रचलित था। सोने के सिक्कों में दीनार अथवा केवडिक का उल्लेख है जिसका प्रचार पूर्व देश में था । मयूरांक राजा ने अपने १. सूत्रकृतांग २, २, पृ० ३२७-अ; उत्तराध्ययनसूत्र ८.१७ । मासक और अर्धमास का उल्लेख महासुपिन जातक (७७), पृ० ४४३ में भी मिलता है । लोहमासक, दारुमासक और जतुमासक का उल्लेख खुद्दकपाठ को अट्ठकथा परमत्थजोतिका १, पृ० ३७ में मिलता है। २. आवश्यकर्णी पृ० ५५० । ३. व्यवहारभाष्य ३.२६७-८। कात्यायन ने माष को पण भी कहा है, यह कार्षापण का बीसवां हिस्सा होता था। भांडारकर, ऐंशियेंट इण्डियन न्यूमिस्मेटिक्स, पृ० ११८। ___४. आवश्यकटीका ( हरिभद्र ) पृ० ४३२ । ५. उत्तराध्ययन ८, पृ० १२४ । सुवर्णमाषक का वजन तोल में १ मासा होता था भांडारकर, वही, पृ० ६३ । ६. उत्तराध्ययनटीका ७.११, पृ० ११८। यह एक बहुत छोटा ताँबे का सिक्का होता था जो ताँबे के कार्षापण का चौथाई होता था। तथा देखिए अर्थशास्त्र, २.१४.३२.८, पृ० १६४ । - ७. यह ग्रीस का एक सिक्का था जिसे ग्रीक भाषा में द्रच्म (Drachma) कहा गया है। ग्रोस लोगों का भारत में ई० पू० २०० से लेकर २०० ई० तक शासन रहा । ८. ईसवी सन् की प्रथम शताब्दी में, कुशानकाल में, रोम के डिनेरियस नाम के सिक्के से यह लिया गया है।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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