________________
१८२
जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज
[तृ० खण्ड
( पुरुषप्रमाण पालकी ) का उपयोग राजाओं और धनिकों द्वारा किया जाता था । अन्य यानों में युग्य (जुग्ग), गिल्लिी और थिल्ली का उल्लेख मिलता है । दो हाथप्रमाण चौकोण वेदी से युक्त पालकी को युग्य कहते हैं; गोल्लदेश ( गोलि, गुन्टूर जिला ) में इसका प्रचार था । दो पुरुषों द्वारा उठाकर ले जायी जाने वाली डोली को गिल्ली, तथा दो खच्चरों वाले यान को थिल्लो कहा जाता है ।" राजाओं की शिविकाओं के विशेष नाम होते थे । महावीर ने चन्द्रप्रभ शिविका में सवार होकर दीक्षा ग्रहण की थी ।" राजा अश्वसेन के पास विशाल नाम को एक अतिशय सुन्दर शिविका थी । द्गण नामक यान का उल्लेख बृहत्कल्पभाष्य में मिलता है ।
नदी और समुद्र के व्यापारी
नदियों के द्वारा भी नावों से माल ढोया जाता था । नदी तट पर उतरने के लिए स्थान बने हुए थे, तथा नोवों द्वारा नदियों को पार किया जाता था । नावों को अगट्टिया, अन्तरंडकगोलिया ( डोंगी ), कोंचवीरग ( 'जलयान ) आदि नामों से कहा जाता था । आश्राविणी नाव में छिद्र होने के कारण उसमें जल भर जाता था, इसलिए उसके द्वारा नदी पार नहीं जा सकते थे । निराश्राविणी नाव
१. पुरुषप्रमाण: जंपानविशेषः, वही ।
२ . वही ।
३. पुरुषद्वयोन्दिता डोलिका, जम्बूद्वीपप्रज्ञसिटीका २, पृ० १२३ | कहीं पर हाथी के ऊपर खखी हुई बड़ी अंबारी को भी गिल्ली कहा गया है, अभयदेव, ३.४ व्याख्याप्रज्ञप्तिटीका ।
४. निशीथभाष्य १६.५३२३ । लाट देश में घोड़े की जीन को थिल्ली कहा गया है, अभयदेव, वही ।
५. श्रावश्यकचूर्णी पृ० २५८ ।
६. उत्तराध्ययनटीका २३, पृ० २६२ - श्र ।
७. बृहत्कल्पभाष्य १.३१७१ ।
८. एकठा नाव नेपाल से श्राती थी जिसमें तक अनाज भरा जा सकता था, एफ बुखनन,
एक बार में ४० से ५० मन
ऐन एकाउण्ट श्रॉव बिहार
एण्ड पटना, १८११-२७, पृ० ७०५ ।
६. बृहत्कल्पभाष्य १,२३६७ | निशीथचूर्णी १६.५३२३ में कहा गया -सगडपक्ख सारिच्छंं जलजाणं कोंचवीरगं ।