________________
तृ० खण्ड] तीसरा अध्याय : विनिमय
१७६ जनक प्रतीत नहीं होती । ये मार्ग जंगलों, रेगिस्तानों और पहाड़ियों में से होकर जाते थे, इसलिए यहाँ घोर वर्षा, चोर-लुटेरे, दुष्ट हाथी, शेर आदि जंगली जानवर, राज्य-अवरोध, अग्नि, राक्षस, गड्डे, सूखा, दुष्काल, जहरीले वृक्ष आदि का भय बना रहता था ।' कभी जंगल का रास्ता पार करते हुए वर्षा होने लगती और कीचड़ आदि के कारण सार्थ के लोगों को वहीं पर वर्षाकाल बिताना पड़ता। कितने ही मार्ग बहुत बोहड़ होते, और इन मार्गों के गुण-दोषों का सूचन यात्री शिला अथवा वृक्षों पर कर दिया करते । विषम मार्ग से यात्रा करते समय गाड़ी का धुरा टूट जाने के कारण संतप्त एक बहलवान का उल्लेख मिलता है। आवश्यकचूर्णी में कहा है कि सिणवल्लि (सिनावन, जिला मुजफ्फरगढ़, पाकिस्तान) के चारों ओर विकट रेगिस्तान था, वहाँ न पानी मिलता था और न छाया का ही कहीं नाम था। पानी के अभाव में यहाँ किसी सार्थ को अत्यन्त कष्ट हुआ।" इसी तरह, कुछ साधु कंपिल्लपुर (कंपिल जिला फरुखाबाद ) से पुरिमताल (पुरुलिया, बिहार ) जा रहे थे; पानी न मिलने के कारण उन्हें अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा । रेगिस्तान की यात्रा करने वाले, सुनिर्मित मार्ग के अभाव में, रास्ते में कीलें गाड़ दिया करते थे जिससे दिशा का पता लग सके। रेगिस्तान के यात्री रात को जल्दी-जल्दी यात्रा करते, तथा बालक और वृद्ध आदि के लिए यहाँ कावड़ ही काम में ली जाती। आवश्यकचूर्णी में धन्य नाम के एक व्यापारी को कथा आती है। अपनी ५०० गाड़ियों में वह बेचने का सामान भर कर चला।
१. ज्ञातृधर्मकथा १५, पृ० १६०; बृहत्कल्पभाष्य १.३०७३, श्रावश्यकटीका ( हरिभद्र ), पृ० ३८४; तथा फल जातक, १, पृ० ३५२, आदि; अपएणक जातक (१), १, पृ० १२८ आदि; अवदानशतक २, १३, पृ० ७१ ।
२. श्रावश्यकचूर्णी, पृ० १३१ । ३. वही पृ० ५११ । ४. उत्तराध्ययनसूत्र ५.१४ ५. पृ० ५५३; २, पृ० ३४ । ६. औपपातिक ३६, पृ० १७८ आदि। ७. सूत्रकृतांगटीका, १.११, पृ० १६६ । ८. निशीथभाष्य १६,५६५२ की चूर्णी ।