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तृ० खण्ड ] तीसरा अध्याय : विनिमय
१७७ इसका उल्लेख किया जा चुका है । कम्बोज के घोड़े बहुत उत्तम होते थे। इनकी चाल बहुत तेज होती और किसी भी तरह की आवाज से ये डरते नहीं थे।' उत्तरापथ अपने जातिवंत घोड़ों के लिए प्रसिद्ध था। घोड़ों के व्यापारियों का द्वारका जाने का उल्लेख है। अन्य कुमारों ने उनसे मोटे और बड़े घोड़े खरीदे जब कि कृष्ण वासुदेव ने कमजोर लेकिन लक्षणसम्पन्न घोड़े मोल लिये । दीलवालिया (?) के खच्चर अच्छे समझे जाते थे। पुण्ड ( महास्थान, जिला बोगरा, बंगाल) अपनी काली गायों के लिए प्रसिद्ध था; गायों को खाने के लिए गन्ने दिये जाते थे।" भेरण्ड ( ? ) में गन्ना बहुत होता था। महाहिमवन्त गोशीर्ष चन्दन के लिए विख्यात था। पारसउल (ईरान) से शंख, पूगीफल (सुपारी), चन्दन, अगुरु, मंजीठ, चाँदी, सोना, मणि, मुक्ता, प्रवाल आदि बहुमूल्य वस्तुएँ आयात होती थीं।
विदेशों से माल लाने वाले व्यापारी राजकर से बचने के लिए छल-कपट करने से नहीं चूकते थे। राजप्रश्नीय में उल्लेख है कि अंकरत्न, शंख और हाथीदाँत के व्यापारी टैक्स से बचने के लिए सोधे मार्गों से यात्रा न कर दुर्गम मार्ग से घूम-घूमकर, इष्ट स्थान पर पहुँचते थे। बेन्यातट के व्यापारी अचल का उल्लेख किया जा चुका है। पारसकूल से धन कमाकर जब वह स्वदेश लौटकर आया तो वह विक्रमराजा के पास सोने, चाँदी और मोतियों के थाल लेकर उपस्थित हुआ। राजा ने पंचकुल के साथ उसके माल का स्वयं निरीक्षण किया। अचल ने शंख, सुपारी, चंदन आदि माल दिखा दिया, लेकिन राजा के कर्मचारियों ने जब पादप्रहार और बांस को लकड़ियों को बोरियों (चोल्ल) में खू चकर देखा तो मजीठ आदि के अन्दर छिपाकर रक्खे
१. उत्तराध्ययनसूत्र ११.१६ । २. उत्तराध्ययनटीका ६, पृ० १४१ । ३. श्रावश्यकचूर्णी पृ० ५५३ । ४. दशवैकालिकचूर्णी ६, पृ० २१३ । ५. तन्दुलवेयालियटीका पृ० २६-श्र । ६. जीवाभिगम ३, पृ० ३५५ । ७. उत्तराध्ययनटीका १८, पृ० २५२-श्र।... ... .. ८. वही, ३, पृ०.६४-श्र। ६. सूत्र १६४ । १२ जै० भा०