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तृ० खण्ड] तीसरा अध्याय : विनिमय
१७५ क्षितिप्रतिष्ठित नगर के व्यापारियों का वसन्तपुर जाने का उल्लेख मिलता है।' साकेत का कोई व्यापारी देशाटन के लिये कोटिवर्ष गया । उस समय वहाँ किसी किरात का राज्य था। व्यापारी ने राजा को बहुमूल्य वस्त्र तथा रत्नमणि दिखाये, जिन्हें देखकर वह अत्यन्त प्रभावित हुआ।
हत्थिसीस व्यापार और उद्योग का दूसरा केन्द्र था । यहाँ अनेक व्यापारी रहा करते थे। यहाँ के व्यापारी कालियद्वीप व्यापार के लिए जाते थे। यह द्वीप सोने, रत्न और हीरे की समृद्ध खानों तथा धारीदार घोड़ों के लिए प्रसिद्ध था।'
पारसद्वीप में प्रायः व्यापारियों का आना-जाना लगा रहता था; सिंहलद्वीप ( श्रीलंका ) में व्यापारी ठहरा करते थे। सिंहल, पारस; बर्बर (बार्बरिकोन), जोणिय ( यवन= यव ), दमिल (तमिल ), अरब, पुलिन्द, बहली ( वाह्नीक, बाल्ख, अफगानिस्तान में) तथा अन्य अनार्य देशों से दासियों के लाये जाने का उल्लेख पहले किया जा चुका है । कृपण-वणिकों का उल्लेख मिलता है ।
आयात-निर्यात कौनसी वस्तुएँ बाहर भेजी जाती थीं, कौनसी बाहर से आती थीं, और कौनसी वस्तुओं का आन्तर्देशिक विनिमय होता था, इन सब बातों के सम्बन्ध में हमें ठीक-ठीक जानकारी नहीं । आन्तर्देशिक व्यापार का जहाँ तक सम्बन्ध है, हम समझते हैं कि बहुत-सी वस्तुओं का विनिमय होता था। ऊपर कहा गया है कि जब चम्पा के व्यापारियों ने परदेश जाने का इरादा किया तो उन्होंने अपने छकड़ों में सुपारी,
१. आवश्यकटीका (हरिभद्र), पृ० ११४-अ। २. श्रावश्यकचूर्णी २, पृ० २०३ ।
३. ज्ञातृधर्मकथा १७, पृ० २०१ श्रादि । कालियद्वीप की पहचान जंजीबार से की जाती है, डाक्टर मोतीचन्द, सार्थवाह, पृ० १७२।।
४. श्रावश्यकचूर्णी, पृ० ४४८ ।
५. आचारांगटीका ६.३, पृ० २२३-अ। वसुदेवहिण्डी (पृ०१४६) में चीन (चीणत्थाण), सुवर्णभूमि; यवनद्वीप, सिंहल और बब्बर की यात्रा कर यानपात्र द्वारा सौराष्ट्र लौट आने का उल्लेख है।
६. निशीथचूर्णी १२.४१७४ चूर्णी ।