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________________ तृ० खण्ड ] तीसरा अध्याय : विनिमय १७३ चम्पा के दूसरे सार्थवाह का नाम था धन्य । एक बार उसने afar - व्यापार के लिए अहिच्छत्रा जाने का विचार किया । उसने विविध प्रकार के माल से अपने छकड़े भरे तथा चरक, चीरिक, चर्मखंडिक, भिच्छंड, पांडुरंग, गौतम आदि साधुओं को साथ लेकर प्रस्थान किया ।' पालित यहां का दूसरा व्यापारी था जो पोत पर सवार होकर व्यापार के लिए पिहुंड (खारवेल शिलालेख का पिथुडग; चिकाकोल और कलिंगपटम के अन्दर में हिस्से में स्थित ) गया था । उज्जैनी के लोगों को सत् और असत् का विवेक करने में अति कुशल कहा है । यह स्थान व्यापार का दूसरा बड़ा केन्द्र था । धनवसु यहां का एक सुप्रसिद्ध व्यापारी था, जिसने अपने सार्थ के साथ व्यापार के लिए चंपा प्रस्थान किया था । मार्ग में डाकुओं ने 'उसके सार्थ पर आक्रमण कर दिया । उज्जैनी से पारसकूल (ईरान) * भी आते-जाते थे । अचल नाम के व्यापारी ने अपने वाहनों को माल से भरकर पारसकूल के लिए प्रस्थान किया । वहाँ उसने बहुत-साधन कमाया और किर बेन्यातट पर लंगर डाला ।" राजा प्रद्योत के जमाने में उज्जैनी में आठ बड़ी-बड़ी दूकानें ( कुत्रिकापण; पालि साहित्य में अन्तरापण) श्रीं जहां प्रत्येक वस्तु मोल मिलती थी । मथुरा उत्तरापथ का दूसरा व्यापारिक केन्द्र था। यहां लोग निज व्यापार से ही निर्वाह करते थे, खेती-बारी यहां नहीं होती थी। यहां के लोग व्यापार के लिए दक्षिणमथुरा (मदुरा ) आते-जाते रहते थे । उत्तरापथ के टंकण ( टक्क) म्लेच्छों के विषय में कहा है कि पर्वतों में रहने के कारण वे दुर्जय थे तथा सोना और हाथीदाँत आदि १. ज्ञातृधर्मकथा, १५, पृ० १५६ । २. उत्तराध्ययनसूत्र २१.२ । ३. उत्तराध्ययनटीका ३, पृ० ६० । ४. श्रावश्यक नियुक्ति १२७६ श्रदि । ५. उत्तराध्ययनटीका ३, पृ० ६४ । ६. बृहत्कल्पभाष्य ३.४२२० आदि । वही, वृत्ति १.१९३९ । ७. ८. आवश्यकचूर्णी, पृ०-४७२ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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