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तृ० खण्ड ] तीसरा अध्याय : विनिमय
१७१ में मिट्टी के घड़े और आभीर (अहीर) घी के घड़े भरकर नगरों में बेचने के लिए ले जाते थे। जल और स्थल मार्गों से व्यापार हुआ करता था । आनन्दपुर (बडनगर, उत्तर गुजरात), मथुरा और दशाणपुर (एरछ, जिला झांसी) ये स्थलपट्टण" के उदाहरण प्रस्तुत किये गये हैं, जहाँ स्थलमार्ग से माल ले जाया जाता था। इसी प्रकार द्वीप, कानद्वीप (?), और पुरिम (पुरिय, जगन्नाथपुरी, उड़ीसा) ये जलपट्टण के उदाहरण दिये गये हैं, जहाँ जलमार्ग से व्यापार होता था । भृगुकच्छ (भड़ौच) और ताम्रलिप्त ( तामलुक ) द्रोणमुख कहे जाते थे, जहाँ जल और स्थल दोनों मार्गों से व्यापार होता था । जहाँ उक्त दोनों ही प्रकार से माल के आने-जाने की सुविधा न हो, उसे कब्बड़" कहा गया है।
चंपा प्राचीनकाल में उद्योग-व्यापार का बहुत बड़ा केन्द्र था। मिथिला से यह जुड़ा हुआ था । यहां अहंन्नग आदि कितने ही
१. निशीथचूर्णी १०.३१७१ चूर्णी । २. उत्तराध्ययनटीका २, पृ० ५१ । ३. बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति १.१०६० । ४. आचारांगचूर्णी ७, पृ० २८१ । ५. निशीथसूत्र ५.३४ की चूर्णी ।।
६. बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति १.१०६० । यह स्थान सौराष्ट्र के दक्षिण में समुद्र की ओर एक योजन चलकर अवस्थित है, निशीथचूर्णी १.६५८ की चूर्णी ।
७. अाचारांगचूर्णी, वही । ८. निशीथचूर्णी, वही। ६. बृहत्कल्पभाष्यबृत्ति, वहो ।
१०. जलनिर्गमप्रवेशं यथा कोंकण देशे स्थानकनामकं पुरं, व्यवहारभाष्य १.३, पृ० १२६ श्र।
११. कब्बड़ कुनगरं, जत्थ जलत्थलसमुन्भवविचित्तभंडविणियोगो णस्थि, दशवैकालिकचूर्णो, पृ० ३६० । कुछ लोग द्रोणमुख और कर्वट को एक ही मानते हैं, हेमचन्द्र, अभिधानचिन्तामणि, पृ० ३ ।
१२. निशीथसूत्र में चम्पा, मथुरा, वाराणसी, श्रावस्ती, साकेत, कांपिल्य, कौशांबी, मिथिला, हस्तिनापुर और राजगृह-इन आठ राजधानियों का उल्लेख है, ६.१६ ।