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________________ तीसरा अध्याय विनिमय आर्थिक व्यवस्था में विनिमय का महत्त्वपूर्ण हाथ रहता है। हरेक व्यक्ति को अपनी आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है । जो चीज जो आदमी स्वयं पैदा नहीं करता, उसे स्वयं पैदा की हुई चीज के बदले उसे दूसरों से लेना पड़ता है। अन्तर्देशीय व्यापार वणिक् लोग मूलधन की रक्षा करते हुए धनोपार्जन करते थे।' कुछ लोग एक जगह दुकान लगाकर व्यापार करते (वणि), और कुछ बिना दुकान के, घूम-फिर कर व्यापार करते (विवणि )।२ कक्खपुडिय नाम के वणिक अपनी गठरी बगल में दबा कर चलते थे। बुद्धि, व्यवसाय, पुण्य और पौरुष को परीक्षा के लिए एक-एक हजार कार्षापण लेकर देश-देशान्तर में बनिज-व्यापार के लिए जानेवाले वणिकपुत्रों का उल्लेख मिलता है। वर्षा काल में लोग व्यापार के लिए नहीं जाते थे।" रत्नों का कोई व्यापारी विदेश में एक लाख रुपये के रत्नों का उपार्जन कर स्वदेश लौट रहा था। मार्ग में शबर, पुलिंद आदि वन्य जातियों ने उस पर आक्रमण किया, और रत्नों की जगह फूटे पत्थर दिखाकर, बड़ी बद्धिमत्तापूर्वक उसने अपने धन की २क्षा की। लोग राजा का आदेश पाकर अपनी गाड़ियाँ लेकर जंगल में जाते और वहाँ से लकड़ियाँ काटकर लाते । कुम्हार अपनी गाड़ियों १. निशीथचूर्णी ११.३५३२ । २. निशीयभाष्य १६.५७५० को चूर्णी । ३. निशीथचूर्णी १०.३२२६ । ४. उत्तराध्ययनसूत्र ७.१५ टीका, पृ० ११६ श्रादि: ५. बृहत्कल्पभाष्य ३.४२५१ । ६. निशीथचूर्णी १०.२६६२ । ७. आवश्यकचूर्णी, पृ० १२८ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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