________________
तृ० खण्ड] दूसरा अध्याय : विभाजन
१६६ के पारिश्रमिक को लाभ कहा गया है। किराया, वेतन और व्याज चुका देने पर जो अतिरिक्त धन व्यापारी के पास बचता है, वह लाभ है । प्रबन्धकर्ता, उत्पादनकर्ता और व्यापारी के बीच सम्बन्ध जोड़नेवाले होते थे, जो अतिरिक्त उत्पादन को उत्पादनकर्ता से थोक भाव पर खरीद कर छोटे-छोटे व्यापारियों को बेच देते थे। श्रष्ठी अथवा धनी व्यापारी ही यह काम कर सकते थे, और वे लोग जल और स्थल मार्गों द्वारा दूर-दूर की यात्रा किया करते थे।