SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 189
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६८ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [तृ० खण्ड भैंस का एक दिन का दूध उसकी मजदूरी के रूप में मिलता था। हिस्सेदारों को आधा, चौथाई या मुनाफे का छठा हिस्सा दिया जाता था। ब्याज किसी काम में पूँजी लगा देने से उसकी जो कीमत या वेतन मिलता है, उसे व्याज कहते हैं। कर्ज और सूदखोरी की प्रथा मौजूद थी। कर्जदार (धारणीय ) यदि अपने ही देश में हो तो उसे कर्ज चुकाना पड़ता था, लेकिन यदि वह समुद्र-यात्रा पर बाहर चला गया हो और मागे में जहाज डूब जाय और वह किसी तरह एक धोती से तैर कर अपनी जान बचा ले तो वह ऋण चुकाने का अधिकारी नहीं समझा जाता था। जैनसूत्रों में इसे वणिक-न्याय कहा गया है। तथा यदि कर्जदार के पास कर्ज चुकाने के लिए पैसा तो है, लेकिन इतना नहीं कि वह सारा कर्ज चुकता कर दे, तो ऐसी हालत में साहूकार उस पर मुकदमा करके उससे अपना आधा-चौथाई कर्ज वसूल कर सकता है, और यह भुगतान पूरे कर्ज का ही भुगतान समझा जायेगा। और यदि यह कर्ज समय पर न चुकाया जा सके तो कर्जदार को कर्ज के बदले में साहूकार की गुलामी करनी होगी। किसी बनिये का दो पली तेल समय पर न चुका सकने के कारण, एक विधवा स्त्री को बनिये की गुलामी करनी पड़ी थी, इसका उल्लेख पहले किया जा चुका है। ___जैनसूत्रों में वृद्धि ( वढि ) शब्द का प्रयोग मिलता है, जिसका अर्थ है लाभ और ब्याज । वाणियगाम के आनन्द गृहपति का उल्लेख किया जा चुका है, उसके पास व्याज पर देने के लिए चार करोड़ का सुवर्ण सुरक्षित था। लाभ उत्पादन के चौथे हिस्से अर्थात् संगठन की देखभाल करनेवाले १. पिंडनियुक्ति ३६९; तुलना कीजिए नारद ६.१० । २. जीवाभिगम ३, पृ० २८०; सूत्रकृतांग २,२, पृ० ३३०-अ; स्थानांग ३.१२८; निशीथचूर्णी २०.६४०४-५ । ३. बृहत्कल्पभाष्य १.२६६० आदि; ६.६३०६ । ४. वही।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy