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________________ दुसरा अध्याय विभाजन विभाजन चार प्रकार का कमाये हुए धन का अथवा अपनी वार्षिक आय का अपने पेशे से सम्बन्धित लोगों में बँटवारा करना विभाजन का मुख्य हेतु है। देखा जाय तो विभाजन के साधन एक ही व्यक्ति अथवा व्यक्तियों द्वारा नियन्त्रित किये जाते थे जिससे कि उत्पादन के सारे हिस्से उसी के पास पहुँचते थे । इस प्रकार, कुल मिलाकर, उन दिनों विभाजन का प्रश्न हो नहीं उठता था जैसा कि हम समाजविकास के बाद की अवस्था में देखते हैं। विभाजन की चार मुख्य अवस्थाएँ हैं-किराया, मजदूरी, व्याज और लाभ । किराया किसी वस्तु का भाड़ा देने के लिए समय-समय पर पैसे का भुगतान किया जाता है, वह किराया है। दुर्भाग्य से विभाजन के सिद्धान्त किस प्रकार नियन्त्रित होते थे, इस सम्बन्ध में हमें बहुत कम जानकारी है । व्याज के सम्बन्ध में पहले कहा जा चुका है कि उसकी राशि किस प्रकार मुख्यतया शुल्क के ऊपर निर्भर करती थी। खेती की पैदावार का नौवां हिस्सा राजा के पास चला जाता तथा प्रायः बाकी बचे हिस्से को अन्य लोगों में बाँट दिया जाता था। वेतन-मजदूरी किसी के श्रम के लिए भत्ता देना, वेतन-मजदूरी कहा जाता है। वेतन या मजदूरी से सम्बन्ध रखनेवाले भृत्यों के सम्बन्ध में पहले कहा जा चुका है । कुछ रोजाना मजदूरी लेकर और कुछ ठेके पर काम करते थे । मजदूरों को उनका वेतन जिन्स अथवा रुपये-पैसे के रूप में दिया जाता था; साधारणतया जिन्स ही उन्हें दी जाती थी। किसी ग्वाले को, दूध दुहने के बदले, दूध का चौथा हिस्सा दिये जाने का उल्लेख मिलता है । किसी दूसरे ग्वाले को आठवें दिन, गाय या १. बृहत्कल्पभाष्य २.३५८१ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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