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तृ० खण्ड ] पहला अध्याय : उत्पादन
१६५ चक्ररत्न की पूजा करने के लिए भरत चक्रवर्ती ने १८ श्रेणी-प्रश्रेणी को बुलवाया और उन्हें आदेश दिया कि प्रजा का कर और शुल्क माफ कर दिया जाये, कोई राज-कर्मचारी जप्ती के लिए किसी के घर में प्रवेश न करे तथा किसी को किसी प्रकार का दण्ड न दिया जावे।।
जैनसूत्रों में सुवर्णकार', चित्रकार और रजक श्रेणियों का उल्लेख मिलता है, शेष श्रेणियों के विषय में अधिक कुछ ज्ञात नहीं होता। श्रेणियों के कर्तव्य, विधान अथवा संगठन के सम्बन्ध में यद्यपि हमें विशेष जानकारी नहीं मिलती, फिर भी इतना अवश्य है कि आजकल की यूनियनों की भाँति ये लोग अपने-अपने दलों में संगठित थे और इन्हें विधान बनाने, निर्णय देने तथा व्यवस्था करने के अधिकार प्राप्त थे।' श्रेणो अपने सदस्यों के हित के लिए प्रयत्नशील रहती और श्रेणी के प्रमुख सदस्य राजा के निकट पहुँचकर न्याय की मांग करते । राजकुमार मल्लदिन्न ने किसी चित्रकार को मल्लीकुमारी का पादांगुष्ठ चित्रित करने के कारण देशनिकाला दे दिया। यह सुनकर चित्रकारों की श्रेणी एकत्रित होकर राजकुमार के पास पहुँची । श्रेणी के सदस्यों ने राजकुमार के सामने सारी बात निवेदन कों, जिन्हें सुनकर मल्लदिन्न ने चित्रकार को क्षमा कर दिया ।६ इसी प्रकार रजकों की श्रेणी के भी राजा के पास न्याय माँगने के लिए जाने का उल्लेख मिलता है।" दरअसल श्रेणी एक प्रकार का ऐसा संगठन था जिसमें एक या विभिन्न जातियों के लोग होते थे, लेकिन उनका व्यापार-धन्धा ही था। एक ये श्रेणियाँ राज्य के जन-समुदाय का प्रतिनिधित्व करती और इससे
चार श्रेणियों का उल्लेख है । तथा देखिए मजूमदार, कॉरपोरेटिव लाइफ इन ऐंशियेट इंडिया, पृ० १८ श्रादि; रामायण २.८३.१२ आदि ।
१. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिटीका ३.४३, पृ० १६३ श्रादि । २. ज्ञातृधर्मकथा ८, पृ० १०५ । ३. वही, पृ० १०७ । ४. अावश्यकचूर्णी २, पृ० १८२ ।
५. देखिए एस० के० दास, द इकोनोमिक हिस्ट्री ऑव ऐंशियेंट इंडिया, पृ० २४४ ।
६. ज्ञातृधर्मकथा ८, पृ० १०७। ७. श्रावश्यकचूर्णी २, पृ० १८२। ८. मजूमदार, कॉरपोरेटिव लाइफ इन ऐंशियेंट इंडिया, पृ० १७ । ...