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________________ तृ० खण्ड ] पहला अध्याय : उत्पादन १६३ गोबर हटाने और चूल्हे में से राख निकालने का काम करते थे, कुछ सफाई का और साफ किये हुए स्थान पर पानी छिड़कने का काम करते थे; कुछ पैर धोने और स्नान करने के लिए पानी देते तथा बाहर आने-जाने का काम करते थे। कुछ अनाज कूटने-पीटने, छड़ने और दलने आदि का काम करते, कुछ भोजन पकाते और परोसते थे।' चेट अंगरक्षक बनकर राजा के पादमूल में तैनात रहता था । अन्य नौकरों-चाकरों में अश्वपोषक, हस्तिपोषक, महिषपोषक, वृषभपोषक, सिंहपोषक, व्याघ्रपोषक, अजपोषक, मृगपोषक, पोतपोषक शूकरपोषक, कुक्कुटपोषक, मेंढपोषक, तित्तिरपोषक, हंसपोषक, मयूर पोषक आदि का उल्लेख मिलता है । पूँजी भूमि को छोड़कर बाकी सब प्रकार का धन पूँजी के अन्तर्गत आता है । पैसे को पैसा कमाता है; पैसे के बिना धन का उपार्जन या तो बहुत नगण्य होगा, या फिर वह अत्यन्त पुराने ढंग का कहा जायगा । पूँजी उत्पादन का साधन है। जिस सम्पत्ति से आमदनी हो, उसे पूँजी कहते हैं। . __उन दिनों बड़े पैमाने पर धन का उपार्जन नहीं होता था; सहकारी संस्थाओं का आन्दोलन भी नहीं था। राज्य के पास राष्ट्रीय धन का काफी हिस्सा मौजूद रहता था जिसे राजा टैक्स और जुर्माने आदि के रूप में प्रजा से वसूल करता था। राजा की ओर से औद्योगिक विकास में धन नहीं लगाया जाता था। कुछेक धनी व्यापारियों को छोड़कर कम ही लोग पूँजीपति कहे जाते थे, और इन लोगों के पास पर्याप्त मात्रा में हिरण्य, सुवर्ण, धन, धान्य, बल, वाहन, कोश, कोष्ठागार, रत्न, मणि, मौक्तिक, शंख, विद्रम आदि रहते थे। यह धन-सम्पत्ति प्रायः उनके बाप-दादाओं से चली आती थी। धनवन्त लोग एक कोटि हिरण्य, मणि, मुक्ता और विद्रम के स्वामी होते थे।" १. ज्ञातृधर्मकथा ७, पृ० ८८। २. औपपातिकसूत्र ६, पृ० २६ । ३. निशीथसूत्र ६.२२ । ४. औपपातिकसूत्र ६, पृ० २०; उत्तराध्ययन सूत्र ६.४६ । ५. कोडिग्गसो हिरएणं मणिमुत्तसिलप्पवालरयणाई । अज्जयपिउपज्जागय एरिसया होंति धणवंता ।। -~-व्यवहारभाष्य १, पृ० १३१-अ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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