________________
१६२
जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [तृ० खण्ड (गामउड ) दासियों के साथ व्यभिचार करने में सङ्कोच न करते थे।
पाँच प्रकार की दाइयाँ दाइयाँ भी बच्चे खिलाने के लिए रक्खी जाती थी। जैनसूत्रों में मुख्यतया पाँच प्रकार की दाइयों का उल्लेख है :-दूध पिलानेवाली (क्षीर ) अलङ्कार आदि से विभूषित करनेवाली ( मण्डन ), नहलाने वालो ( मजण ), क्रीड़ा कराने वाली ( क्रीडापन ), और बच्चे को गोद में लेकर खिलाने वाली ( अङ्क) ।
दासवृत्ति से मुक्ति पुत्रजन्म अथवा उत्सवों आदि के अवसर पर दासों को दासवृत्ति से मुक्त कर दिया जाता । कदाचित् घर का मालिक प्रसन्न होकर भी दासियों का मस्तक प्रक्षालन कर उन्हें स्वतन्त्र कर देता था।
__मजदूरी पर काम करनेवाले भृत्य भृत्य पैसा अथवा जिन्स लेकर मजदूरी करते थे। इनकी दशा भी कुछ अच्छी नहीं थी, फिर भी दासों की अपेक्षा इन्हें अधिक स्वतन्त्रता थी । दासों को जीवनभर के लिए खरीद लिया जाता, जब कि भृत्यों को मूल्य देकर कुछ समय के लिए ही नौकरी पर रक्खा जाता था । चार प्रकार के भृत्यों का उल्लेख किया गया है :-रोज़ाना मजदूरी लेकर काम करनेवाले (दिवसभृतक), यात्रा पर्यन्त सहायता करनेवाले ( यात्राभृतक ), ठेके पर काम करनेवाले (उच्चताभृतक) और अमुक काम पूरा करने पर अमुक मजदूरी लेनेवाले (कब्बाल भृतक)।
कौटुम्बिक पुरुष घर में रहते हुए घर का काम-काज देखतेभालते थे । अपने मालिक को आज्ञा का वे पालन करते थे। कुछ लोग
१. श्रावश्यक चूर्णी पृ० २८४ ।
२. ज्ञातृधर्मकथा पृ० २१, निशीथभाष्य १३.४३७६-४३६१; पिंडनियुक्ति टीका ४१८ इत्यादि । दिव्यावदान, ३२, पृ० ४७५ में चार धाइयों का उल्लेख है--अंक, मल, स्तन और क्रीडापनिका तथा देखिये सुश्रुतसंहिता, शारीरस्थान १०.२५, पृ० २८४, मूगपक्खजातक (५३८). भाग ६, पृ० ५ इत्यादि ललितविस्तर, १०० ।
३. ज्ञातृधर्मकथा १, पृ० २०; व्यवहारभाष्य ६.२०८ । नारदस्मृति (सेक्रेडबुक्स आव द ईस्ट. १८८६) ५.४२ श्रादि में भी इसका उल्लेख है ।
४. स्थानांग ४.२७१। ५. नारदस्मृति ५.२४ भी देखिए ।