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________________ तृ० खण्ड ] पहला अध्याय : उत्पादन १६१ दासचेटियाँ दासचेटों की भाँति दासचेटियाँ भी घर में काम करने के लिए रक्खी जाती थीं। वे खाद्य, भोज्य, गन्ध, माल्य, विलेपन और पटल आदि लेकर अपनी स्वामिनी के साथ यक्ष आदि के मन्दिरों में जाती थों।' आनन्द गृहपति की बहलिया नाम की दासी उसकी रसोई के बर्तन साफ किया करती थी। एक बूढ़ी दासी प्रातःकाल लकड़ी बोनने के लिये गई। भूखी-प्यासी वह दुपहर को लौटकर आई। लेकिन लकड़ियाँ बहुत थोड़ी थी, इसलिये उसके मालिक ने उसे मारपीट कर फिर से लकड़ी चुगने के लिये भेज दिया। उत्तराध्ययनसूत्र को टीका में दासीमह का उल्लेख मिलता है जिससे पता लगता है कि दासियाँ भी धूमधाम से उत्सव मनाकर मनबहलाव किया करती थीं। जैनसूत्रों में अनेक दासियों का उल्लेख मिलता है। ये दासियाँ विदेशों से मँगायी जाती थीं। वे इंगित, चिन्तित, प्रार्थित आदि में कुशल होतीं तथा अपने देश की वस्त्रभूषा आदि धारण कर जब सभा में उपस्थित होती तो बहुत आकर्षक जान पड़तीं। इन दासियों में कुब्जा, किरातो, वामना (बौनी), वड भी (जिनका पेट आगे को निकला हुआ हो ), तथा बर्बरी (बर्बर देश की ), बकुशी ( बकुश देश की), योनिका ( जोनक देश की), पलविया ( पह्नव देश को), ईसनिका, धोरुकिनी (अथवा थारुकिनी, वारुणिया, वासिइणी), लासिया ( लासक देश), लकुसिका (लकुश देश ), द्राविडी ( द्रविड देश ), सिंहली (सिंहल देश ), आरबी ( अरब देश), पुलिंदी ( पुलिंद देश), पक्कणी, मुरुंडी, शबरी, पारसी ( पर्शिया) आदि दासियों के नाम गिनाये गये हैं। प्रीतिदान के समय विविध प्रकार के वस्त्राभूषणों के साथ दासियों को भी भेंट देने का रिवाज था। गाँव के मुखिया १. उत्तराध्ययनटीका १२, पृ० १७३-अ । २. श्रावश्यकचूर्णी, पृ० ३०० । ३. वही, पृ० ३३२ । ४. उत्तराध्ययनटीका ८, पृ० १२४ । ५. निशीथसत्र ६.२८, उत्तराध्ययन टीका २, पृ० ३६; ज्ञातृधर्मकथा १, पृ० २१; व्याख्याप्रज्ञप्ति ६.६, पृ० ८३६ । ६. ज्ञातृधर्मकथा १, पृ० २३ । ११ जै० भा०
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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