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________________ १६० जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [तृ० खण्ड बच्चे रोते-रोते अपने माँ-बाप के पास जाते और फिर उनके मां-बाप धन्य सार्थवाह के पास जाकर चिलात की शिकायत करते । धन्य अपने दासचेट को बुरा-भला कहता, बार-बार डांटता और फटकारता, लेकिन वह न सुनता । एक बार ऐसी ही किसी बात पर धन्य ने दासचेट को बहुत डांटा-फटकारा और मारकर घर से निकाल दिया। चिलात स्वच्छन्द भाव से मद्य, मांस आदि का सेवन करने लगा, जुआ खेलने लगा और वेश्याओं के घर रहने लगा। धीरे-धीरे वह चोरों का सरदार बन गया और धन्य सार्थवाह की कन्या सुंसुमा का अपहरण कर उसने धन्य से बदला लिया। पंथक नामक दासचेट राजगृह में धन्य के देवदत्त बालक को खिलाया करता था। एक बार की बात है कि देवदत्त की मां ने अपने बालक को नहलाया-धुलाया, उसके कौतुक-मंगल किये और अलङ्कारों से विभूषित कर उसे पंथक के हाथ में दे दिया। पंथक उसे राजमार्ग पर ले गया, और उसे एक तरफ बैठाकर अन्य बालकों के साथ क्रीड़ा करने लगा। इतने में, विजय नाम का चोर वहां उपस्थित हुआ और मौका पा देवदत्त को उठा ले गया। थोड़ी देर के बाद जब पंथक ने वहां बालक को न देखा तो वह बहुत घबराया, और रोता-बिलखता अपने मालिक के पास आया, और गिड़गिड़ाकर उसके पैरों में गिर पड़ा। अपने बच्चे का अपहरण सुनकर धन्य पछाड़ खाकर गिर पड़ा। कुछ समय के बाद किसी अपराध के कारण, धन्य को जेल की हवा खानी पड़ी। इस समय धन्य की पत्नी भोजनपिटक ('टिफिन') पर मोहर लगा और एक बर्तन में पानी भर, प्रतिदिन पंथक को देती और उसे वह जेल में अपने मालिक के पास ले जाता। । अग्गियअ, पव्वयअ और सागरअ ( सागरक ) आदि दासचेटों के नामों का उल्लेख है। १. ज्ञातृधर्मकथा १८, पृ० २०७; आवश्यकचूर्णी, पृ० ४६७ । २. मृच्छकटिक ४.६ में उल्लेख है कि चोर धाइयों की गोद में से बच्चे उचक कर ले जाते थे। ३. ज्ञातृधर्मकथा २, पृ० ५१ । ४. आवश्यकचूर्णी, पृ० ४४६ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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