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( १७ ) चौथा अध्याय : उपभोग।
१९३-२१८ खाद्य पदार्थ । मदिरापान । मांसभक्षण । जैन साधु और मांसभक्षण । वस्त्रों के प्रकार । दूष्य-एक कीमती वस्त्र । अन्य वस्त्र । जैन साधु और उनके वस्त्र । जूते । घर । आमोद-प्रमोद ।
चौथा खण्ड : सामाजिक व्यवस्था पहला अध्याय : सामाजिक संगठन ।
२२१-२३३ वर्ण और जाति । चार वर्ण । ब्राह्मण । ब्राह्मणों के सम्बन्ध में जैन मान्यता । ब्राह्मणों के विशेषाधिकार । अध्ययन-अध्यापन । यज्ञ-याग । ब्राह्मणों के अन्य पेशे। क्षत्रिय । गृहपति । श्रेणीसंगठन । म्लेच्छ ।
नीच और अस्पृश्य । दूसरा अध्याय : कुटुम्ब-परिवार ।
२३४-२४४ पारिवारिक जीवन । सम्बन्धी और मित्र । बालक-नन्हे । स्वप्न । - गर्भकाल । गर्भपात । पुत्रजन्म । तीसरा अध्याय : स्त्रियों की स्थिति।
२४५-२८५ स्त्रियों के प्रति सामान्य मनोवृत्ति । दूसरा पक्ष । विवाह । विवाह की • वय । विवाह के प्रकार । विवाह के लिए शुल्क । प्रीतिदान । दहेज की प्रथा। विवाह-समारम्भ । स्वयंवर विवाह । गन्धर्व विवाह । परस्पर के आकर्षण से विवाह । कला-कौशल देखकर विवाह । भविष्यवाणी से विवाह । विवाह के अन्य प्रकार । घरजमाई की प्रथा। साटे में विवाह । बहुपत्नीत्व और बहुपतित्व प्रथा। विधुरविवाह । विधवा-विवाह । नियोग की प्रथा। सती प्रथा। पर्दे की प्रथा। गणिकाओं का स्थान । गणिकाओं की उत्पत्ति। देवदत्ता गणिका। वैशिकशास्त्र । कलाओं में निष्णात गणिका । कामध्वजा वेश्या । वेश्याएं नगर की शोभा । कोशा-उपकोशा। उज्जैनी की देवदत्ता। अन्य गणिकाएं। गुंड पुरुष । साध्वी स्त्रियां। साध्वी
परिवाजिकाओं का दौत्य कर्म । चौथा अध्याय : शिक्षा और विद्याभ्यास ।
२८६-२९९ अध्यापक और विद्यार्थी । दुविनीत शिष्य। अच्छे-बुरे शिष्य । विद्यार्थी जीवन । अनध्याय । विद्यार्थियों का सम्मान । महावीर का लेखशाला में प्रवेश । पाठ्यक्रम । बहत्तर कलाएं। विद्या के केन्द्र । २ जै० भा० भू०