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________________ तृ० खण्ड ] पहला अध्याय : उत्पादन . १५७ और धनी-मानी लोग ही दासों के मालिक नहीं थे, बल्कि अन्य लोग भी अपने परिवार की सेवा के लिए दास-दासी रखते थे। क्षेत्र, वास्तु हिरण्य और पशु के साथ दासों का भी उल्लेख किया गया है। इन चारों को सुख का कारण ( कामखंध) बताया है। दास और दासी की गणना दस प्रकार के बाह्य परिग्रहों में की गयी है। स्थानांग सूत्र में छह प्रकार के दास बताये हैं कुछ लोग जन्म से ही दासवृत्ति करते हैं (गर्भ), कुछ को खरीदा जाता है (क्रीत), कुछ ऋण न चुका सकने के कारण दास बना लिये जाते हैं (ऋणक), कुछ दुर्भिक्ष के समय दासवृत्ति स्वीकार करते हैं, कुछ जुर्माना आदि न दे सकने के कारण दास बन जाते हैं और कुछ कर्जा न चुका सकने के कारण बन्दीगृह में डाल दिये जाते हैं। दो पली तेल के लिये गुलामी कोशल देश के सम्मत नामक किसी कुटुंबी ने जैन दीक्षा ग्रहण कर ली थी। जब वह साधु अवस्था में परिभ्रमण करता हुआ अपने गांव पहुंचा तो उसके कुटुंब में केवल उसकी एक विधवा बहन बची थी। बहन ने हर्षित होकर अपने भाई का स्वागत किया। किसी बनिये की दूकान से वह दो पली तेल उधार लायी और उसने अपने भाई के आहार का प्रबन्ध किया । उस दिन वह अपने भाई से धर्म श्रवण करती रही, इसलिए कोई मजदूरी वगैरह न कर सकने के कारण, बनिये का तेल वापिस न कर सकी। दूसरे दिन, उसका भाई वहां से विहार कर गया। उसका सारा दिन शोक में ही बीता, इसलिए अगले दिन भी वह कोई काम न कर सकी। तीसरे दिन, वह अपना खाना-पीना जुटाने में लगी रही, इसलिए तीसरे दिन भी बनिये के ऋण से मुक्त न हो सकी । यह ऋण प्रतिदिन दुगुना-दुगुना होता जाता था। दो पली से बढ़ते-बढ़ते यह तेल एक घटप्रमाण हो १. उत्तराध्ययन ३.१७ । २. बृहत्कल्पभाष्य १.८२५ । ३. ४, पृ० १६१-१; निशीथचूर्णी, ११.३६७६ । मनुस्मृति (८.४१५) में सात प्रकार के और याज्ञवल्क्यस्मृति (१४, पृ० २४६) में चौदह प्रकार के दास गिनाये गये हैं । अर्थशास्त्र (३.१३. १-४६, पृ० ६५ इत्यादि में भी दासों के सम्बन्ध में विवेचन मिलता है। ...
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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