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________________ / पहला अध्याय : उत्पादन तृ० खण्ड ] १५५ लिए सलाई ( अंजनसलागा ) २ तथा 'क्लिप' ( संडासग ), कंघा ( फणिह ), 'रिबन' ( सीहलिपासग ), शीशा ( आदसंग ), सुपारी (पूयफल) और तांबूल (तंबोलय) आदि का उपयोग किया जाता था । अन्य पेशेवर लोग ऊपर कहे हुए खेतीबारी, पशुपालन या व्यापार-धंधे से आजीविका चलाने वाले लोगों के अतिरिक्त और भी बहुत से पेशेवर लोग थे, जिनकी गणना श्रमिक वर्ग में नहीं जा सकतो, फिर भी वे समाज के लिए उपयोगी थे । इनमें आचार्य, चिकित्सक ( वैद्य ), वास्तुपाठक, लक्षणपाठक, नैमित्तिक ( निमित्तशास्त्र के वेत्ता ), तथा गांधर्विक, नट, नर्तक, जल्ल ( रस्सी का खेल करनेवाले ), मल्ल (मल्ल युद्ध करनेवाले), मौष्टिक ( मुष्टियुद्ध करनेवाले), विडंबक ( विदूषक ), कथक ( कथावाचक ), प्लवक ( तैराक ), लासक ( रास गानेवाले), आख्यायक (शुभाशुभ बखान करनेवाले), लंख (बाँस पर चढ़कर खेल दिखानेवाले), मंख ( चित्रपट लेकर भिक्षा मांगने वाले), तूणइल्ल ( तूणा बजानेवाले), तुंबवीणिक ( वीणावादकं ), तालाचर ( ताल देनेवाले), भुजग (संपेरे), मागध ( गाने-बजानेवाले) हास्यकार ( हंसी-मजाक करनेवाले), डमरकर ( मसखरे), चाटुकार, दर्पकार तथा कौत्कुच्य ( काय से कुचेष्टा करनेवाले) आदि का उल्लेख है । राजभृत्यों में छत्रग्राही, सिंहासनग्राही, पादपीठग्राही, पादुकाग्राही, यष्टिग्राही, कुंतग्राही, चापग्राही, चमरग्राही, पाशकग्राही, पुस्तकग्राही, फलकग्राही, पीठग्राही, वीणाग्राही, कुतुपग्राही, हडफ ( धनुष ) ग्राही, दीपिका (मशाल) ग्राही आदि का उल्लेख मिलता है । * ܕ १. महावग्ग (६. २.६. पृ० २२१) में पांच प्रकार के अंजनों का उल्लेख है :–कृष्ण अंजन, रस अजन, सोत (स्रोत) अंजन, गेरुक जन श्रौर कपल्ल ( दीपक को स्याही से तैयार किया हुआ) अंजन | २. चुल्लवग्ग ५.१३.३५, पृ० २२५ में इसका उल्लेख है । ३. सूत्रकृतांग ४.२.७ आदि | तंबूल के लिए देखिए गिरिजाप्रसन्न मजुमदार का 'इण्डियन कल्चर' १, २-४, पृ० ४१६ में लेख । ४. श्रौपपातिकसूत्र १, पृ० २ । ५. बहो, पृ० १३०; निशीथसूत्र ६.२१ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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