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१५४ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [तृ० खण्ड णेमालिय, अगरु, लवंग, वास और कर्पूर का उल्लेख है।' इलायची, लवंग, कपूर, ककोल ( सीतलचीनी) और जायफल को पाँच सुगन्धित पदार्थों में गिना गया है।
चैत्यों, वासभवनों और नगरों में धूप जलायी जाती थी। धूपदान को धूपकडच्छु अथवा धूपघटी नाम से कहा गया है। सुगन्धित द्रव्य बाजारों में बेचे जाते थे । इन द्रव्यों को बेचनेवालों को गंधी, और उनकी दूकानों को गंधशाला कहा जाता था । __ लोग अपने पैरों को मलवाते, दबवाते, उनपर तेल, घी या मज्जा की मालिश कराते; लोध्र, कल्क (कक्क), चूर्ण और वर्ण का उपलेप कराते, फिर गर्म या ठंडे पानी से उन्हें धो डालत, तत्पश्चात् चंदन आदि का लेप करते और धूप देते।"
स्त्रियों की प्रसाधन सामग्री
स्त्रियों की प्रसाधन-सामग्री में सुरमेदानी (अंजनी )", लोध्रचूर्ण, लोध्रपुष्प, गुटिका, कुष्ठ, तगर, खस के साथ कूटकर मिलाया हुआ अगरु , मुंह पर लगाने का तेल और होंठ रचाने का चूणे (नंदिचुण्ण) मुख्य है । इसके सिवाय, सिर धोने के लिए आंवलों (आमलग), माथे पर बिन्दी लगाने के लिए तिलककरणी, आँखों को आंजने के
१. राजप्रश्नीयसूत्र ३६, पृ० ६१; बृहत्कल्पभाष्य १.३०७४ । २. उपासकदशा १, पृ०६।
३. ज्ञातृधर्मकथा ८, पृ० ६६; राजप्रश्नीयसूत्र १०० । तथा देखिए गिरिजाप्रसन्न मजूमदार का 'इण्डियन कल्चर' १, १-४, पृ० ६५८ आदि में प्रसाधन सम्बन्धी लेख ।। ___४. व्यवहारभाष्य ६ .२३ । उदान की टीका परमत्यदीपनी (पृ० ३००) में दस गंध द्रव्यों का उल्लेख है-मूल, सार, फेग्गु, तच, पपटिका, रस, पुप्फ, फल, पत्त, गंध ।
५. आचारांग २, १३.३६५ पृ० ३८३; तथा बृहत्कल्पभाष्य ५.६०३५ । ६. देखिए रामायण २.६१.७६ ।
७. मौयों के खजाने में इसका संग्रह किया जाता था; तथा देखिए अर्थशास्त्र, २.११.६१, पृ० १६५ ।