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________________ तृ० खण्ड ] पहला अध्याय : उत्पादन १५३ सुगंधित द्रव्य विविध प्रकार के सुगन्धित तेल और इत्र आदि तैयार किये जाते थे । अलसी, कुसुंभा और सरसों को घाणी में पेर कर तेल निकाला जाता था।' मरु पर्वत से तल लाया जाता। शतपाक और सहस्रपाक नामक तेलों को अनेक जड़ी-बूटियों के तेल में सैकड़ों बार उबालकर विधिपूर्वक तैयार किया जाता । हंस को चीर कर उसमें से मूत्र और पुरीष निकाल डालते, फिर उसके अन्दर औषधियां भर कर उसे सी देते और तेल में पकाते । यह हंस तेल कहा जाता था। और भी अन्य प्रकार के पुष्टिदायक और उल्लासप्रद तेलों का उल्लेख जैनसूत्रों में मिलता है। लोग अपने शरीर पर चंदन का लेप करते थे। अनेक प्रकार का सुगंधित जल काम में लाया जाता। दर्दर और मलयाचल से आनेवाले सुगन्धित द्रव्यों का उल्लेख किया गया है। गोशीर्ष चन्दन हिमवन्त ( हिमालय) पर्वत से लाया जाता था ।" इससे प्रतिमायें बनाई जाती थीं । हरिचन्दन (श्वेत चंदन ) का उल्लेख मिलता है। सुगंधित द्रव्यों में कूट ( कुट्ठ ), तगर, इलायची (एला), चूआ (चोय), चंपा, दमण, कुंकुम, चंदन, तुरुष्क, उसीर (खस), मरुआ, जाति, जूही (जूहिया), भल्लिका, स्नानमल्लिका, केतकी, पाटलि १. आवश्यकचूणी २, पृ० ३१६; पिंडनियुक्ति ४० । २. निशीथचूर्णी पीठिका ३४८ की चूर्णी । ३. औपपातिकसूत्र ३१, पृ० १२१ आदि । दिव्यावदान १७, पृ० ४०३ में दूध, कुकुम और कपूर आदि सुगन्धित द्रव्यों का उल्लेख है जिनसे सुगन्धित जल तैयार किया जाता था। ४. ज्ञातृधमकथा १, पृ. ३०; तथा देखिए रामायण २.६१.२४ । ५. उत्तराध्ययनटोका १८, पृ० २५२-अ; २३, पृ० २८८-अ । देखिये अर्थशास्त्र २.११.२६.४५।। ६. आवश्यकचूर्णी पृ० ३६८,६६ । ७. आचारांगचूर्णी पृ० १६६ । ८. कुष्ठ का उल्लेख अथर्ववेद में मिलता है । यह उत्तर में बर्फीले पहाड़ों पर होता था और वहां से पूर्वीय प्रदेशों में ले जाया जाता था। आजकल यह कश्मीर में होता है।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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