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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज
[ तृ० खण्ड
एक बार, साकेत के राजा पडिबुद्धि की रानी ने बड़ी धूमधाम नागयज्ञ मनाया । इस अवसर पर भाँति-भाँति के सुगन्धित पुष्पों के द्वारा एक अत्यन्त मनोज्ञ पुष्पमण्डप बनाया गया, और इस मण्डप में दिग्दिगन्त को अपनी सुगन्धि से व्याप्त करता हुआ एक श्रीदामगंड ( मालाओं का समूह ) लटकाया गया ।' राजगृह में अर्जुनक नाम का एक सुप्रसिद्ध मालाकार रहता था । वह अपने पुष्पाराम (पुष्पों का बगीचा) में प्रतिदिन फूलों की टोकरी ( पत्थिय; पिडग ) लेकर फूल चुनने के लिए जाता, और फिर उन्हें नगर के राजमार्ग पर बैठकर बेचता । फूलों को टोकरी के लिए पुप्फछज्जिया ( पुष्पच्छादिका), पुप्फपडलग (पुष्पपटलक ) और पुफचंगेरी आदि शब्दों का प्रयोग किया गया है । बड़ के पत्तों के दोने ( खल्लग) बनाये जाते थे । *
पुष्पों के अतिरिक्त, तृण (उदाहरण के लिए, मथुरा में वीरण = खस की पंचरंगी सुन्दर मालाएँ बनायी जाती थीं), मुंज, वेत्त ( बंत ), मदनपुष्प, भेंड़, मोरपंख, कपास का सूता ( पोंडिय), सींग, हाथीदांत, कौड़ी, रुद्राक्ष और पुत्रंजीव आदि की भी मालाएं ( मल्ल; दाम ) बनायी जाती थीं ।" फूलों से मुकुट तैयार किये जाते थे । विवाह अथवा अन्य उत्सव आदि के अवसरों पर द्वारों को वंदन - मालाओं से
सजाया जाता ।
शरीर पोंछने के तौलियों ( उल्लणिया ) तथा दातौन ( दन्तवण ), अभ्यंग (तेल आदि ), उबटन ( उव्वट्टण ), स्नान ( मज्जन ), वस्त्र और विलेपन, पुष्प, आभूषण, धूप और मुखवास का उल्लेख मिलता है ।
की
१. ज्ञातृधर्मकथा ८, पृ० ६५; कल्पसूत्र ३.३७ ।
२. अन्तःकृद्दशा ३, पृ० ३१ आदि ।
३. राजप्रश्नीयसूत्र २३; तुलना कीजिए श्रावश्यकचूर्णी २, पृ० ६२ । ४. पिंडनियुक्ति २१० ।
५. निशीथसूत्र ७ . १ तथा चूर्णी ।
६. दशवैकालिकचूर्णी, पृ० ७६ ।
७.
अंगुत्तरनिकाय २, ५ पृ० ४८६ में भिक्षुत्रों के लिये दातौन करने हुए उसके पांच गुण बताये हैं ।
अनुज्ञा देते
८. उपासकदशा १ पृ० ७८ ।