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तृ० खण्ड ] पहला अध्याय : उत्पादन
१४६ .मकान बनाने के लिए ईंट ( इट्टिका )', मिट्टी ( पुढ़वी), शर्करा (सकरा), बालू (बालुया) और पत्थर ( उपल) आदि की आवश्यकता पड़ती थी। पक्के मकानों में चूना पोतने (सुधाकम्मंत ) का रिवाज था । पत्थरों के घर ( सेलोवटुाण ) बनाये जाते थे। - सूर्यास्त के बाद दीपक जलाकर प्रकाश किया जाता था। दीपक प्रायः मिट्टी के होते । कुछ दीपक सारी रात जलाये जाते और कुछ थोड़े समय के लिये । अवलंबन, उत्कंपन और पंजर नाम के दीपकों का उल्लेख मिलता है । अवलंबन दीप शृंखला से बंधे रहते, उत्कंपन ऊर्ध्व दण्ड में लटके रहते और पंजर फानस या कंदील की भांति गोलाकार अबरक के घट में रक्खे रहते । स्कन्द और मुकुन्द के चैत्यों में रात्रि के समय दीपक जलाये जाते, और अनेक बार कुत्तों या चूहों के द्वारा दीपक के उलट दिये जाने से देवताओं की काष्ठमयी मूर्तियों में आरा लग जातो।६ मशालें (दीपिका) जलाई जाती; मशालची ( दीवियग्गाह ) मशाल जलाकर जुलूस के आगे-आगे चलते थे । गोबर और लकड़ी को ईधन के काम में लिया जाता।
___ अन्य कारीगर आदि हाथ के कारीगर चटाई (छविय = छर्विकाः = कटादिकाराः) बुनते, मूज की पादुकाएं बनाते (मुंजपादुकाकार), रस्से बंटते ( वरुड़), तथा छाज ( सुप्प) और टोकरियाँ बनाते। इसके सिवाय, ताड़पत्रों से पंखे ( तालवृन्त; बालवीजन )", पलाशपत्र और बांस की खप्पचों,
१. बृहत्कल्पभाष्य १.११२३; ३.४७६८, ४७७० । २. सूत्रकृतांग २,३.६१ । ३. श्राचारांग २, २.३०३ । ४. बृहत्कल्पभाष्य २.३४६१ । ५. ज्ञातृधर्मकथाटीका १, पृ० ४२-अ; देखिए प्रीतिदान की सूची । ६. बृहत्कल्पभाष्य २.३४६५ । ७. निशीथसूत्र ६.२६ । ८. प्रज्ञापना १.७० ।। ६. निशीथचूर्णी ११.३७०७ को चूर्णी । १०. आवश्यकचूर्णी, पृ० १३८; ज्ञातृधर्मकथा १, पृ० ११ ।