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________________ १४६ जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज [ तृ० खण्ड लुहार की दुकानों को समर' अथवा आएस' कहा गया है। लोहे की भट्टियों में कच्चा लोहा पकाया जाता था। गर्म पकते हुए लोहे को संड़सी से पकड़कर उठाया जाता, और फिर लोहे को नेह (अहिकरणी) उ पर रखकर कूटा जाता । लोहे को हथौड़े से कूटते-पीटते और काटते और उससे उपयोगी वस्तुएँ तैयार करते । " 3 कंसेरे (कंसकार ) कांसे के बर्तन बनाते थे; उनकी गिनती नौ कारुओं में की गयी है ।" संदेश आदि लिखने के लिए ताम्रपट्टों का उपयोग किया जाता था । हाथीदाँत बहुत कीमती माना जाता था । हाथी का शिकार करने के लिए पुलिन्दों ( जंगल में रहने वाली आदिवासी जाति) को द्रव्य दिया जाता और वे हाथियों को मारकर उनके दाँत निकालते । अन्य लोग भी हाथीदाँत के लिए हाथियों का शिकार करते थे । ' हाथीदाँत की मूर्तियां बनायी जाती थीं। हाथी दाँत का काम करने वालों को शिल्प - आर्यों में गिना गया है ।" हड्डी, सींग और शंख से विविध वस्तुएं बनायी जातीं । बन्दरों की हड्डियों से लोग मालाएँ तैयार करते और उन्हें बच्चों के गले में पहनाते । हाथी- दाँत और कौड़ियों से भी मालाएँ बनायी जातीं । " कुम्हार (कुम्भकार ) मिट्टी से अनेक प्रकार के घड़े, मटके आदि बनाते । सद्दालपुत्त पोलासपुर का एक प्रसिद्ध कुम्भकार था। शहर के बाहर उसकी पाँच सौ दुकानें थीं जहां बहुत से नौकर-च करते थे । कुम्हार लौंग पहले मिट्टी में पानी डालकर उसे सानते; उसमें -चाकर काम १. उत्तराध्ययनसूत्र १.२६ । २. श्राचारांग २, २.३०३ । ३. व्याख्याप्रज्ञप्ति १ १६.१ । ४. उत्तराध्ययनसूत्र १६.६७ । ५ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ३, पृ० १६३-अ | ६. हरिभद्र, आवश्यकटीका, पृ० ६८३ । ७. आवश्यकचूर्णी, २, पृ० २६६ । ८. वही, पृ० १६६ । ६. बृहत्कल्पभाष्य १.२४६६ । १०. प्रज्ञापना १.७० । ११. निशीथसूत्र ७.१ - ३ की चूर्णी ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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