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________________ तृ० खण्ड] पहला अध्याय : उत्पादन १४५ मिलता है।' धातु के पानी से तांबे आदि को सिक्त करके सुवर्ण बनाने की मान्यता प्रचलित थी।। लुहार, कुम्हार आदि कर्मकर। लुहारों ( कम्मार= कर्मार ) का व्यापार उन्नति पर था। ये लोग खेतीबारी के लिए हल और कुदाली आदि तथा लकड़ी काटने के लिए फरसा, वसूला आदि बनाकर बेचते थे। लोहे की कीलें, डंडे और बेड़ियाँ बनायी जाती थी । लोहे, त्रपुस , ताम्र, जस्ते, सीसे, कांसे, चाँदी, सोने, मणि, दंत, सोंग, चर्म, वस्त्र, शंख और वज्र आदि से बहमूल्य पात्र तैयार किये जाते थे। अन्य पात्रों में थाल, पात्री, थासग (हिन्दी में तासा), मल्लग (प्याले), कइविय (चमचा), अवपक्क ( छोटा तवा ), करोडिआ (हिन्दी में कटोरी) का उल्लेख मिलता है। भोजन बनाने के बर्तनों में तवय (तवा ), कवल्लि (हिन्दी में खपड़ा ) और कन्दुअ (एक प्रकार का तवा) उल्लेखनीय हैं। चंदालग (हिन्दी में कंडाल ) तांबे का बर्तन होता था। लोहे से इस्पात बनाया जाता और उससे अनेक प्रकार के औजार, हथियार, कवच, वम आदि तैयार किये जाते । इस्पात से साधुओं के उपयोग में आने वाले क्षुर (पिप्पलग), सुई ( सुइ, आरिय ), आरा, नहनी (नक्खच्चनी) तथा शस्त्रकोश आदि बनाये जाते । लुहारों की दुकानों (कम्भारसाला; अग्गिकम्म) का उल्लेख मिलता है। वैशाली की कम्मारसाला में भगवान महावीर ठहरे थे।" १. उत्तराध्ययनटीका ४. पृ० ८३; दशवैकालिकचूर्णी १, पृ० ४४ । २. निशीथचूर्णी १३.४३१३ । ३. उत्तराध्ययनसूत्र १६.६६; आवश्यकचूर्णी, पृ० ५२६ । ४. श्रीपपातिकसूत्र ३८, पृ० १७३ । टीका में काचवेडन्तिग (?), वृत्तलोह ( बटलोइ ), कंसलोह, हारपुटक और रीतिका का उल्लेख है। तथा निशीथसूत्र ११.१; १२.४०४३; १०.३०६० भाष्य । ५. ज्ञातृधर्मकथाटीका १, पृ० ४२-अ में प्रीतिदान की सूची देखिए । ६. विपाकसूत्र ३, पृ० २२; व्याख्याप्रज्ञप्ति ११.६ । ७. सूत्रकृतांग ४.२.१३ । ८. बृहत्कल्पभाष्य १.८८३ आदि । ६. व्यवहारभाष्य १०.४८४ । १०. श्रावश्यकचूर्णी. पृ० २६२। १० जै० भा०
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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