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________________ १४४ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [ तृ० खण्ड आसन और पल्यंग ( पलंग ) आदि सुवर्ण से जड़े हुए रहते थे ।' सोने भृंगार ( झारी ) का उपयोग होता था । मध्यम स्थिति के लोग चाँदी का उपयोग करते थे । कीमती रत्नों और मणियों में कर्केतन, वज्र, वैडूर्य, लोहिताक्ष, मसारगल्ल, हंसगर्भ, पुलक, सौगंधिक, ज्योतिरस, अंजन, अंजनपुलक, रजत, जातरूप, अंक, स्फटिक, रिट इन्द्रनील, मरकत, सस्यक, प्रवाल, चन्द्रप्रभ, गोमेद, रुचक, भुजमोचक, जलकांत और सूर्यकांत के नाम उल्लेखनीय हैं । नन्द राजगृह का एक सुप्रसिद्ध मणिकार ( मणियार ) था | मणिकार मणि, मुक्ता आदि में डंडे से छेद करने के लिये उसे सान पर घिसते थे । भांडागार में मणि, मुक्ता और रत्नों का संचय किया जाता था । " कीमिया बनानेवालों (धातुवाइय) का उल्लेख १. ज्ञातृधर्मकथाटीका १, सूत्र २१, पृ० ४२ - देखिए प्रीतिदान की सूची । २. श्रावश्यकचूर्णी पृ० १४७ । ३. रामायण ३.४३.२८ और महाभारत ७.१६.६६ में इसका उल्लेख है | मसारगल्ल मसार पहाड़ी से मंगाया जाता था; राइस डेविड्स, मिलिंद - प्रश्न का अनुवाद, पृ० १७७, नोट ६ । सम्मोहविनोदिनी पृ० ६४ में इसे कबरमनि कहा है । डाक्टर सुनीतिकुमार चटजीं ने न्यू इण्डियन ऐण्टीक्वेरी, जिल्द २, १६३६-४० में, इसका मूलस्थान चीन बताया है । ४. उत्तराध्ययन सूत्र ३६.७५ आदि; प्रज्ञापना १.१७ ; निशोथभाष्य २.१०३१-३२ । चौबीस रत्नों के लिये देखिये दशवैकालिकचूर्णी, पृ० २१२, तथा देखिए बृहत्संहिता ७६, ४ आदि; दिव्यावदान १८, पृ० २२६; मिलिन्दप्रश्न, पृ० ११८ | उदान की कथा परमत्थदीपनी, पृ० १०३ में निम्नलिखित रत्न-मणियों का उल्लेख है : - वजिर, महानील, इन्दनील, मरकत, बेलूरिय, पदुमराग, फुस्सराग, कक्केतन, फुलक, विमल, लोहितांक, फलिक, पवाल, जोतिरंग, गोमुतक, गोमेद, सौगंधिक, सुत्ता, संख, अंजनमूल, राजावट्ट, अमतब्बाक, पियक, ब्राह्मणी; तथा देखिए लुई फिनो की ले लेपिदियेर दियों पृ० १३७ पर अगस्तिमत की सूची, पेरिस १८६६ । ५. ज्ञातृधर्मकथा ३ पृ० १४१ । ६. निशीथचूर्णी १.५०८ चूर्णी । ७. निशोथसूत्र ६.७ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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