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________________ तृ० खण्ड] पहला अध्याय : उत्पादन १४१ कातने का उल्लेख आता है। बुनकरों की शालाओं (तन्तुवायशाला) में कपड़ा बुना जाता था । नालंदा के बाहर इस प्रकार की एक शाला में ज्ञातुपुत्र महावीर और मंखलिपुत्र गोशाल साथ-साथ रहे थे। वस्त्रों के अनेक प्रकारों का उल्लेख जैनसूत्रों में मिलता है । वस्त्रों का नियमित व्यापार होता था। ___ कपड़े धोने और कपड़े रंगने के उद्योग-धंधे का प्रचार था । अठारह श्रेणियों में धोबियों की गणना की गयी है। खार (सज्जियाखार ) से मैले कपड़े धोये जाते थे । पहले, खार में कपड़े भिगोये जाते, फिर उन्हें भट्टी पर रखकर गर्म किया जाता और उसके बाद साफ पानी से निखारकर उन्हें धो डालते । मैले कपड़ों को पत्थर पर पीटा जाता ( अच्छोड), उन्हें घिसा जाता, रगड़ा जाता, और जब कपड़े धुलकर साफ चिट्टे हो जाते तो उन्हें धूप देकर सुगंधित किया जाता। धोबी (णिल्लेवण ) कम मैले कपड़ों को घर में ही घड़ों के पानी से धोकर. साफ करते । यदि कपड़े अधिक मैले हुए तो तालाब, नदी आदि पर जाते तथा गोमूत्र, पशुओं की लेंडी, क्षार आदि से कपड़ों को धोते ।" रजकशालाओं का उल्लेख मिलता है।६ ___ तौलिये आदि वस्त्रों को काषाय रंग से रंगा जाता । रंगे हुए वस्त्र गर्म मौसम में पहने जाते । परिव्राजक गेरुए रंग के वस्त्र धारण करते। रजक कपड़े धोने के साथ-साथ कपड़े रंगने का भी पेशा करते। खान और खनिज विद्या खनिज पदार्थों की भरमार थी, इसलिए प्राचीन काल में खानों का उद्योग महत्वपूर्ण माना जाता था। खानों में से लोहा, तांबा, १. श्रावश्यकचूर्णी, पृ० २८२ । २. ज्ञातृधर्मकथा ५, पृ० ७४; आवश्यकचूर्णी २, पृ० ६१; निशीथचूर्णी १०.३२५१ । ३. पिंडनियुक्ति ३४ । ४. वही ३४; आचारांग २, ५.१.३६७; बृहत्कल्पसूत्र १.४५ । ५. निशीथभाष्य २०.६५६४-६५ । - ६. व्यवहारभाष्य १०.४८४ । ७. ज्ञातृधर्मकथा १, पृ० ७; बृहत्कल्पभाष्य पीठिका ६१३ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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