________________
१३६ जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज [तृ• खण्ड ऊँची कर बबूल की पत्तियों को बड़े शौक से खाता था।' दूध के वृक्षों (खीरदुम ) में बड़, उदुंबर और पीपल के नाम मिलते हैं। नंदिफल नाम के वृक्ष देखने में सुन्दर लगते थे लेकिन उनके बीज भक्षण करने से मनुष्य मर जाता था। वृक्षों की बिक्री होती थी। ___ गुच्छों में वाइंगिणी ( मराठी में बांगो; हिन्दी में बैंगन), सल्लकी, धुंडकी (बोन्दको ), कच्छुरी, जासुमणा, रूपी, आढकी ( तूअर ), नोली, तुलसी, मातुलिंगी, कुस्तुम्भरी, पिप्पलिका (पीपल ), अलसी, वल्ली, काकमाची, पटोलकंदली, बदर ( बेर), जवसय ( जवासा), निर्गुण्डी, सन, श्यामा, सिंदुवार, करमर्द (करोंदा ), अदरूसग ( अडूसा), करीर, भंडी ( मजीठ ), जीवन्ती, केतकी, पाटला और अंकोला आदि का उल्लेख है। गुल्मों में नवमालिका, कोरंटक, बंधुजीवक, मनोज्ञ (बेला की एक जाति ), कणेर, कुब्जक ( सफेद गुलाब), मोगरा (बेला ), यूथिका ( जूही), मल्लिका, वासंती, मृगदंतिका, चंपक, कुंद आदि का उल्लेख है। लताओं में पद्मलता, नागलता, अशोकलता, चंपकलता, चूतलता, वनलता, वासंतीलता, अतिमुक्तकलता, कुन्दलता और श्यामलता के नाम मिलते हैं । बल्लियों में कालिंगी (तरबूज की बेल ), तुंबी, त्रपुसी (ककड़ी को बेल ), एलवालुङ्की । एक प्रकार की ककड़ी), घोषातको (कड़वी घींसोड़ी ), पंडोला, पंचांगुलिका, नीली ( गली), करेला, सुभगा ( मोगरी की एक जाति ), देवादारु, नागलता (नागरवेल), कृष्णा (जटामांसी), सूर्यवल्ली (सूरजमुखी), मृद्वीका ( अंगूर ), गुंजावल्ली (गुंजा की बेल ), मालुका आदि बल्लियों के नाम आते हैं। ..
· तृणों में दर्भ, कुश, अर्जुन, आषाढक, क्षुरक आदि, तथा वलय में ताल, तमाल, शाल्मलि, सरल (चीड़), जावतो, केतकी, कदली (केला), भोजवृक्ष (भोजपत्र वृक्ष ), हिंगुवृक्ष, लवंगवृक्ष, पूगफली (सुपारी), खजूर और नारियल के नाम आते हैं । हरित वनस्पतियों
१. उत्तराध्ययनटीका ६, पृ० १४२-श्र। २. निशीथचूर्णी, पृ०६०।।
३. आवश्यकचूणी, पृ० ५०६ । .. ४. निशीथचूर्णी १५, पृ० ५८१ ।
..५. ककड़ी को वालुंक अथवा चिम्भिड ( चीभईगुजराती में ) कहा गया है, बृहत्कल्पभाष्य पीठिका ३७६ ।