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तृ० खण्ड] पहला अध्याय : उत्पादन
१३५ हुआ था । जंगलों से सम्बन्ध रखने वाले वन, वनखण्ड, वनराजि, कानन, अटवी और अरण्य आदि शब्दों का प्रयोग किया गया है। राजगृह नगर के पास अठारह योजन लम्बी एक महाअटवी थी, जहाँ बहुत से चोर निवास करते थे।' अटवी में पथिक लोग प्रायः रास्ता भूल जाते । चोर-डाकू पुलिस के डर से यहाँ छिपकर बैठ जाते थे । क्षीरवन अटवी तथा कोसंब ( कोशाम्र) अरण्य और दंडकारण्य' के नाम उल्लिखित है।
वनों में भांति-भांति के वृक्ष, गुच्छ, गुल्म, लता, वल्ली, तृण, वलय, हरित और औषधि वगैरह पायी जाती थीं । वृक्षों में नीम, आम, जामुन, साल, अंकोर (हिन्दी में ढेरा), पीलु, श्लेषात्मक, सल्लकी, मोचको, मालुक, बकुल, पलास, करंज, पुत्रंजीव, अरीठा, बहेड़ा, हरी, . भिलावा, क्षीरिणी ( गंभारी), धातकी, प्रियाल, पूतिकरंज, सोसम, पुन्नाग (नागकेसर ), नागवृक्ष, श्रीपर्णी और अशोक आदि, तथा तिन्दुक, कपित्थक, अंबाडक ( आम्रातक=आम जैसा फल ), मातुलिंग (बिजौरा ), बेल, आँवला, फणस, दाडिम, अश्वत्थ (पीपल ), उदुंबर, बड़, न्यग्रोध (जिसके चारों ओर छोटे-छोटे वट फैले हों), नंदिवृक्ष (एक प्रकार का पोपल का वृक्ष ), पिप्पली (पीपली), शतरी (एक प्रकार का पीपल), पिलक्खु (प्लक्ष =पिलखन), काकोदुंबरी (एक प्रकार का उदुंबर ), कुस्तुम्बरी (एक प्रकार के जंगली अंजीर की जाति ), देवदाली ( देवदारु ), तिलक, लकुच (हिन्दी में वडहर ), छत्रौघ, शिरोष सप्तपर्ण, दधिपण, लोध्र, धव, चन्दन, अर्जुन, नीम ( भूमिकदंब), कुटज (इन्द्रजव) और कदंब आदि वृक्षों के उल्लेख मिलते हैं । बबूल (बब्बूल) का उल्लेख आता है। ऊँट अपनी गर्दन
१. उत्तराध्ययनटीका ८, पृ० १२५, पृ० ६२ । २. वही, २३, पृ० २८७ । । ३. निशीथचूर्णी ८.२३४३ की चूर्णी । ४. वही १६,५७४३ की चूर्णी ।
५. प्रज्ञापनासूत्र १.२३, राजप्रश्नीय ३, पृ० १२; बृहत्कल्पभाष्य १.१७१२-१३; अथर्ववेद में उल्लिखित विविध वृक्षों के लिए देखिए एस० के० दास, द इकोनोमिक हिस्ट्री ऑव ऐंशियंट इंडिया, पृ० ६८-१०३, १०५-१०८, २०४-२०६ । तथा रामायण ३.१५.१५ आदि; ४.१.७६ श्रादि; महाभारत २.५७.४४ आदि; सुश्रुत १.४६.१६३ ।