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जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज
[ तृ० खण्ड
को गर्म पानी से तर रक्खा जाता।' बकरी के तक्र का उल्लेख मिलता है।` क्षीरगृह ( खीरघर ) में पर्याप्त मात्रा में दूध के बने पदार्थ उपलब्ध होते । गाँव के अहीर अपनी गाड़ियों में घी के घड़े रखकर उन्हें नगरों में बेचने ले जाते । पशुओं के चमड़े, हड्डियाँ, दांत ( हाथीदांत ) और बालों का उपयोग किया जाता ।" कसाईखानों ( सूना ) में प्रतिदिन सैकड़ों भैंसों आदि का वध होता था ।
भेड़, बकरी आदि पशुओं को बाड़ों में रक्खा जाता इनकी ऊन काम में ली जाती । मेड़ की ऊन से और ऊँट के बालों से जैन साधुओं की रजोहरण तथा कम्बल बनाये जाते ।' लोग भेड़ को मारकर उसमें . तेल और कालीमिर्च डाल उसे भक्षण करते । उत्तराध्ययन नमक, में औरश्रीय (उरभ्र = मेंढ़ा ) अध्ययन में बताया है कि लोग मेंढ़ों को चावल, मूंग, उड़द आदि देकर खूब पालते - पोसते, उनके शरीर को हल्दी के रंग से रंगते और फिर उन्हें मारकर अपने अतिथियों को खिलाते ।" उष्ट्रपालों का उल्लेख मिलता है ।" पशुओं की चिकित्सा की जाती थी । करीष अग्नि ( उपले की आग ) का उल्लेख किया गया है ।
सूत्र
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वृक्ष-विज्ञान
हमारे देश का अधिकांश भूभाग वन, जंगल और अरण्य से घिरा
१. निशीथचूर्णी ४.१६६३ ।
२. उत्तराध्ययनटीका १८, पृ० २४६ । ३. निशीथसूत्र ६.७ १
४. बृहत्कल्पभाष्य पीठिका ३६०-३६१ |
५. पिण्डनिर्युक्ति ५० ।
६. श्रावश्यकचूर्णी २. पृ० १६६ |
७. विपाकसूत्र ४, पृ० ३० ।
८. वृहत्कल्पसूत्र २.२५, भाष्य ३.३६१४ ।
६. सूत्रकृतांग २, ६.३७ ।
१०. ७.१; बृहत्कल्पभाष्यटीका १. १८१२; तथा निशीथचूर्णी १३.४३४६ ११. निशीथचूर्णी ११.३६६७ चूर्णी ।
१२. वही २०, पृ० ३०४ ।
१३. उत्तराध्ययन १२.४३ ।