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________________ तृ० खण्ड ] पहला अध्याय : उत्पादन १३३ बरस के कम्बल और सम्बल नामके दो हट्टे-कट्टे बछड़े भेंट किये ।" गाय अपने बछड़े से बहुत प्रेम करती और व्याघ्र आदि से संत्रस्त होने पर भी अपने बछड़े को छोड़कर न भागती पशुओं को खाने के लिए घास, दाना और पानी ( तणपाणिय ) दिया जाता | हाथियों को नल एक तृण ), इक्षु, भैंसों को बाँस की कोमल पत्तियाँ, घोड़ों को हरिमन्थ ( काला चना ), मूंग आदि, तथा गायों को अर्जुन आदि खाने के लिये दिये जाते गाय, बैल और बछड़े गोशालाओं ( गोमंडप ) में रक्खे जाते । चोर ( कूटग्राह ) गोशालाओं में से, रात के समय, चुपचाप पशुओं की चोरी कर लेते । । किसी गृहपति के पास भिन्न-भिन्न जाति को गायें थीं । गायों की संख्या इतनी अधिक थी कि एक ही भूमि में चरने के कारण एक जात की गायें दूसरी जात की गायों में मिल जातीं जिससे ग्वालों में लड़ाईझगड़ा होने लगता । इधर ग्वाले झगड़ा टंटा करने में लगे रहते और उधर जंगल के व्याघ्र आदि गायों को उठाकर ले जाते, या वे किसी दुर्गम स्थान में जाकर फंस जातीं और वहाँ से न निकल सकने के कारण मर जातीं । यह देखकर गृहपति ने अपनी काली, नोली, लाल, सफेद और चितकबरी गायों को अलग-अलग ग्वालों के सुपुर्द कर दिया । " घी-दूध पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता था । बाड़ों ( दोहणवाडग ) में गायों का दोहन किया जाता था । प्रायः महिलाएँ ही दूध दूहने का काम करती थीं ।" दही, छाछ, मक्खन और घी को गोरस कहते, और गोरस अत्यन्त पुष्टिकारक भोजन समझा जाता । गाय, भैंस, ऊँट, बकरी और भेड़ों का दूध काम में लिया जाता । दही के मटकों १. श्रावश्यकनिर्युक्ति ४७१; आवश्यकचूर्णी पृ० २८० आदि । २. बृहत्कल्पभाप्य १.२११६ । ३. निशीथभाष्यचूर्णी ४.१६३८ । ४. विपाक सूत्र २, पृ० १४ आदि; तथा देखिए बृहत्कल्पभाष्यटीका १.२७६२ । ५. आवश्यकचूर्णी पृ० ४४ । ६. निशीथभाष्य २.११६६ । ७. निशीथचूर्णी ११.३५७६ चूर्णी । ८. श्रावश्यकचूर्णी, २ पृ० ३१६ |
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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