________________
१३२ जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज [तृ० खण्ड था । यहाँ ऊँचे सींग वाले गंधवृषभ का उल्लेख किया गया है जो अपने तीक्ष्ण सींगों से पशुओं के साथ जूझता हुआ मस्त फिरा करता था।' समान खुर और पूछवाले, तुल्य और तीक्ष्ण सोंगवाले, रजतमय घंटियोंवाले, सूत की रस्सीवाले, कनकखचित नाथवाले
और नीलकमल के शेखर से युक्त बैलों का उल्लेख मिलता है। बैलों को हलों में जोतकर उनसे खेती की जाती और रहट में जोतकर खेतों की सिंचाई के लिए कुओं से पानी निकाला जाता। उन्हें मालअसबाब से भरी हुई गाड़ी में जोतते, चाबुक से हाँकते, दाँतों से पूँछ काट लेते और आरी से मारते । ऐसी हालत में कभी अड़ियल बैल जुएँ को छोड़ अलग हो जाते जिससे गाड़ी का माल नीचे गिर पड़ता। आवश्यकचूर्णी में वधमानक नाम के गांव में धनदेव वणिक का उल्लेख है। वह अपनी बैलगाड़ियों में माल भरकर व्यापार के लिए जाया करता था। एक बार, वेगवती नदी पार करते समय उसका एक बैल रास्ते में गिर पड़ा, और उसे वह वहीं छोड़कर आगे बढ़ गया।" ___ गोपालन का बहुत ध्यान रखा जाता था। आभीर (अहोर) गायभैसों को पालते-पोसते। इनके गांव अलग होते थे। ग्वाले ध्वजा लेकर गायों के आगे चलते और गायें उनका अनुसरण करतीं। दही मथने (सुलण ) का उल्लेख आता है। मथुरा की कोई अहीरनी किसी गंधी को दूध और दही दिया करती थी। एक बार की बात है, अपने पुत्र के विवाहोत्सव पर उसने गंधी और उसकी स्त्री को निमंत्रित किया । लेकिन गंधी विवाह में सम्मिलित न हो सका; उसने वर-वधू के लिए अनेक सुन्दर वस्त्र और आभूषण उपहार में भेजे। यह देखकर अहीर लोग बड़े प्रसन्न हुए और इसके बदले उन्होंने गंधी को तीन
१. उत्तराध्ययनटीका ६, प० १३४-अ। • २. ज्ञातृधर्मकथा ३, पृ० ६० । ३. वृहत्कल्पभाष्यटीका १.१२१६ । ४. वही १.१२६८; उत्तराध्ययन २७. ३-४ । ५. आवश्यकचूर्णी; पृ० २७२; तथा निशीथचूी १०. ३१६३ चूर्णी । ६. बृहत्कल्पभाष्य १.२१६६ । ७. वही ४.५२०२ । ८. पिण्डनियुक्ति ५७४ ।