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तृ० खण्ड ]
पहला अध्याय : उत्पादन
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क्रीड़ा के लिए जाया करता था ।' अन्य उद्यानों में अग्रोद्यान, अशोकवनिका, गुणशिल, जीर्णोद्यान, तिंदुक आदि अनेक नाम आते हैं । नगरों में एक या एक से अधिक बाग-बगीचे लगाये जाते, और इनमें भांति-भांति के फल-फूल खिलते । जैनसूत्रों में पद्म, नाग, अशोक, चंपक, चूत (आम्र ), वासन्तो, अतिमुक्तक, कुन्द, और श्यामा आदि लताओं का उल्लेख मिलता है । पुष्पों में नवमालिका, कोरंटक, बंधुजीवक, कनेर, कुब्जक ( सफेद गुलाब ), जाति, मोगर (बेला), यूथिका ( जूही ), मल्लिका, वासन्ती, मृगदंतिका, चंपक, कुन्द, श्यामलता' आदि का उल्लेख है । तृण, मुंज, बेंत, मदनपुष्प, पिच्छी, बोंड ( कपास के डंठल ), सींग, शंख, हाथीदांत, कौड़ी, हड्डी, काष्ठ, पत्र, पुष्प, फल, बीज और हरित आदि से मालाएँ तैयार की जाती थीं ।
फलों में आम, जामुन, कपित्थ ( कैथ ), फणस ( कटहल ); दाडिम (अनार), कदलीफल ( केला ), खजूर, नारियल आदि के नाम मिलते हैं । ६
सहस्र आम के वृक्ष वाले सहस्राम्रवन उद्यानों का उल्लेख मिलता है। आम की पेशी, भित्त ( आधा टुकड़ा), सालग (छिलका), डालग (गोल टुकड़े), और चोयग ( रुंछा) का उल्लेख किया गया है । ' जंगल के फलों को जहाँ सुखाने के लिए लाया जाता, उस स्थान को को कहते हैं । फलों को सुखाने के बाद उन्हें गाड़ी में भरकर
१. पिंड नियुक्ति २१४-१५ |
२. राजप्रश्नीयसूत्र १, पृ० ५; ३, पृ० १८; ज्ञातृधर्मकथा १, पृ० १० । ३. प्रज्ञापना १.२३.२३ - २५ | पुष्पों और पौधों के लिए देखिए रामायण २.६४.८ श्रादि ।
४. निशीथसूत्र ७.१ ।
५. कदली फल को गंठिम ( जिसमें गांठ या बीज नहीं हों ) कहा गया है । महाराष्ट्र में यह बहुत होता था, बृहत्कल्पभाष्य १.३०६३ ।
६. प्रज्ञापना १.२३.१२ - १७; आचारांग २, १.८.२६६; बृहत्कल्पभाष्य १.३०६३, तथा देखिये सुश्रुत १.४६.१३६ ।
७. उपासकदशा ७, पृ० ४७; तथा देखिए एस० के० दास, इकोनोमिक हिस्ट्री व ऐंशियेंट इण्डिया, पृ० २०७ इत्यादि ।
८. निशीथसूत्र १५.६ ।
९ जै० भा०
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