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जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज [तृ० खण्ड वर्षा ऋतु में वणिक् धान्य की बिक्री करते, साधारण लोग अपने घरों पर छप्पर डालते, और किसान खेतों में हल चलाते।' लेकिन वर्षा के अभाव में फसल नष्ट हो जाने से हाहाकार मच जाता। तित्थोगालि में पाटलिपुत्र की बाढ़ का बड़ा रोमांचकारी वर्णन किया गया है। व्यवहारभाष्य में कांचनपुर में बाढ़ आने का उल्लेख मिलता है । अचिरावती ( राप्ती ) में बाढ़ आ जाने से सारा श्रावस्ती नगर ही बह गया था। सिन्धु देश में भी बहुत बाढ़ आया करती थी।"
उद्यान-कला उद्यान-कला या बागवानी विकास दशा में थी। जैनसूत्रों में उजाण ( उद्यान ), आराम और णिज्जाण का उल्लेख मिलता है। उद्यान पुष्प वाले अनेक वृक्षों से शोभित रहता, तथा उत्सव आदि के अवसर पर लोग वस्त्राभूषण धारण कर यहाँ भोजन के लिए एकत्रित होते । यहाँ अनेक प्रकार के अभिनय-नाटक किये जाते और शृंगार-काव्य पढ़े जाते । यह स्थान नगर के पास होने से यान-वाहन का क्रीड़ास्थल होता। आराम में वृक्ष और लता आदि के कुंज बने रहते, जहाँ दम्पति अथवा धनाढ्य लोग तरुणियों के साथ क्रीड़ा किया करते । आराम को नाली के पानी से सींचा जाता। कुछ उद्यान केवल राजाओं के लिए ही सुरक्षित रहते, इन्हें णिज्जाण कहा जाता था । सूर्योदय और चन्द्रोदय नाम के उद्यानों में कोई राजा अपने अन्तःपुर सहित
१. निशीथचूर्णी १०.३१५२ । २. कल्याणविजय, वीरनिर्वाण और जैनकाल गणना, पृ० ४२ आदि । ३. १०.४५०।
४. आवश्यकचूर्णी, पृ० ६०१; हरिभद्र, श्रावश्यकटीका, पृ. ४६५; मलयगिरि, आवश्यकटीका, पृ० ५६७; टोनी; कथाकोश, पृ०६ आदि ।
५. निशीथचूर्णी, २.१२२५ की चूर्णी ।
६. बृहत्कल्पभाष्य १.३१७०-१; निशीथसूत्र ८.२, तथा चूर्णी; व्याख्याप्रज्ञप्तिटीका ५.७, राजप्रश्नीयटीका १, पृ० ५; अनुयोगद्वारचूर्णी, पृ० ५३।।
७. व्याख्याप्रज्ञप्तिटीका ५.७, पृ० २२७-२२८ (बेचरदास, अनुवाद ); राजप्रश्नीयटीका, वही।
८. बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति ३.४५२२; आरामो सारणीए पाइज्जइ ।