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जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज
कपास दि
सूत की फसलों में कपास ( कप्पास; फलही ) सबसे मुख्य थी । अन्य फसलों में रेशम, ऊर्णा' (ऊन ), क्षौम ( छालटो ) और सन का उल्लेख मिलता है । शालि अथवा शाल्मलि ( सिंबलिपायव ) के वृक्षों से भी रेशमी सूत तैयार किया जाता था । निशीथसूत्र में इक्षु, शालि, कपास, अशोक, सप्तपर्ण, चंपक और आम्र के बनों का उल्लेख मिलता है । भरुकच्छहरणी नामक ग्राम में एक किसान रहता था जो एक हाथ से हल चलाता हुआ, दूसरे से अपनी बाड़ो में से कपास तोड़ता जाता था ।"
[तृ० खण्ड
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रंगे हुए कपड़े पहनने का रिवाज था । रंगों में कृष्ण, नील, लोहित, हरिद्र और शुक्ल रंगों का उल्लेख है, इससे पता लगता है कि रासायनिक रंग तैयार किये जाते थे ।
तांबूल' और पूगफलो (सुपारी) खाने का रिवाज था । जायफल, सीतलचीनी ( कक्कोल ), कपूर, लौंग और सुपारी को लोग पान में डालकर खाते थे ।' साग-भाजी में बैंगन, ककड़ी, मूली, पालक ( पालंक), करेला ( करेल्ल), कंद ( आलुग ), सिंघाड़ा (शृंगाटक ), लहसुन, प्याज ( पलांडु ), सूरण, " तुंबी (अलाऊ) " आदि का उल्लेख
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बनाकर तैयार की जाती थी । मोनियर विलियम्स की डिक्शनरी में इसका उल्लेख है ।
१. ऊर्णा को लाट देश में गड्डर कहा जाता था, निशीथचूर्णी ३, पृ० २२३ ।
२. बृहत्कल्पसूत्र २.२४ में जंगिय, भंगिय, साणय, पोत्तय ( कपास का
बना हुआ ) और तिरीपट्टक नाम के पांच प्रकार के वस्त्र गिनाये हैं ।
३. प्रज्ञापनासूत्र १.२३; उत्तराध्ययनसूत्र १६.५२ ; सूत्रकृतांग ६.१८ । ४. ३. ७८-७९ ।
५. उत्तराध्ययनटीका ४, पृ० ७८- ।
६. राजप्रश्नीय ३, पृ० २० ।
७. उपासकदशा १, पृ० ६ ।
८. प्रज्ञापना १.२३ ।
६. निशीथभाष्य १२.३६६३ और चूर्णं ।
१०. वही, १. २३; उत्तराध्ययनसूत्र ३६.६६ आदि : ११. ज्ञातृधर्मकथा १६, पृ० १६३ ।