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________________ १२४ जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज [तृ• खण्ड निष्पाप,' आलिसंदग ( अथवा सिलिंद ), सडिण (अरहर), पलिमंथक ( काला चना ), अतसी (अलसी), कुसुंब (कुसुंबी), कंगु, रालग ( कंगु की एक जाति ), तुवरी (तूअर ), कोदूसा (कोदों की एक जाति), सर्षप ( सरसों ), हिरिमंथ (गोल चना), बुक्कस और पुलाक (निस्सार अन्न) के नाम आते हैं। धान्यों को कोटि कुम्भों में भर कर कोठार में संचित करने वालों को नैयतिक कहा जाता था ।" मसाले मसालों में शृंगवेर ( अदरक ), सुंठ (सूंठ), लवंग (लौंग), हरिद्रा ( हल्दी), वेसन ( टीका-जीरकलवणादि ), मरिय ( मिर्च ), पिप्पल (पोपल) और सरिसवत्थग (सरसों) का उल्लेख मिलता है। गन्ना चावल की भांति गन्ना ( उच्छू) भी यहां की मुख्य फसल थी। दशपुर (मंदसौर ) में एक इक्षुगृह ( उच्छुघर ) का उल्लेख मिलता है। इक्षुगृहों में जैन साधु ठहरा करते थे । गन्ना कोल्हुओं ( महाजन्त; का उल्लेख है । तथा देखिए निशीथभाष्य २०.६३८२, दशवैकालिकचूर्णी, पृ० २१२; तुलना कीजिए अर्थशास्त्र २.२४.४१.१७-१८; मिलिन्दप्रश्न पृ० २६७; मार्कण्डेय पुराण पृ० २४४ । १. इसे वल्ल भी कहा गया है, यह मादक होता है (बृहत्कल्पभाष्य ५.६०४६ ); मोनियर विलियम्स की संस्कृत-इंग्लिश डिक्शनरी में इसे एक प्रकार का गेहूं बताया है । २. एक प्रकार का चवला । ३. कोरदूषक को महाभारत ( ३.१६३.१६ ) में एक अच्छे किस्म का धान्य कहा गया है, जब कि सुश्रुत १.४६.२१ में इसकी गणना कुत्सित धान्यों में की गई है। ४. व्याख्याप्रज्ञप्ति ६.७; २१.२, २१,३; तथा उत्तराध्ययनटीका ३, पृ० ५८-अ उत्तराध्ययनसूत्र ८.१२; निशीथभाष्य २.१० २६-३० । ५. व्यवहारभाष्य १, पृ० १३१-अ। ६. व्याख्याप्रज्ञप्ति ८.३; प्रज्ञापना १.२३.३१, ४३-४४। ७. पिंडनियुक्ति ५४ । ८. आचारांग २, १.८.२६८ । ६. उत्तराध्ययनटीका २, पृ० २३ ।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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