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________________ १२३ तृ० खण्ड ] . पहला अध्याय : उत्पादन हुए कोठों, अथवा घर के ऊपर बने हुए कोठों ( माला ) में रक्खा जाता; द्वार पर लगाये जाने वाले ढक्कन को गोबर से, और फिर उसे चारों तरफ से मिट्टी से पोत दिया जाता। तत्पश्चात् उसे रेखाओं से चिह्नित कर और मिट्टी की मोहर लगाकर छोड़ दिया जाता।' इसके सिवाय, कुम्भी, करभी, पल्लग (पल्ल), मुत्तोली ( ऊपर और नीचे सकीर्ण और मध्य में विशाल कोठा ), मुख, इदुर, अलिन्द और ओचार (अपचारि) नाम के कोठारों का उल्लेख किया गया है। गंजशाला में धान्य कूटे जाते थे। चावलों को ओखली ( उदूखल) में छड़ा जाता; उनको मलकर साफ करने के स्थान को खलय कहते ।। गोकिलंज (एक प्रकार की फॅड ) में पशुओं को सानी की जाती; सूप (सुप्तकत्तर ) द्वारा अनाज साफ किया जाता। सत्रह प्रकार के धान्य जैनसूत्रों में १७ प्रकार के धान्यों का उल्लेख है:-ब्रीहि (चावल), यव (जौ), मसूर, गोधूम (गेहूँ), मुद्ग (मूंग), माप ( उड़द ), तिल, चणक ( चना ), अणु ( चावल की एक किस्म ), प्रियंगु (कंगनी), कोद्रव ( कोदों), अकुष्ठक (कुट्ट ), शालि ( चावल ), आढकी, कलाय ( मटर ), कुलत्थ (कुलथी) और सण ( सन )। अन्य धान्यों में १. बृहत्कल्पसूत्र २.३, तथा भाष्य २.३३६४-६५। निशीथसूत्र १७.१२४ में कोठी ( कोठिा ) का उल्लेख है। २. बृहत्कल्पसूत्र २.१० में कुम्भी और करभी का उल्लेख है। मुँह के श्राकार की कोठी को कुम्भी और घट के आकार की कोठी को करभी कहा गया है । रामायण २.६१.७१ में भी इनका उल्लेख है। ३. मज्झिमनिकाय १,१०, पृ० ७६ में उल्लेख है। ४. अनुयोगद्वारसूत्र १३२ । ५. निशीथसत्र ६.७ । ६. व्यवहारभाष्य १०.२३; सूत्रकृतांग ४.२.१२ । ७. उपासकदशा २, पृ० २३; सूत्रकृतांग ४.२.७-१२ । ८. बृहत्कल्पभाष्य २.३३४२ में सफेद तिलों (सेडगतिल) का उल्लेख है। ६. बृहत्कल्पभाष्यवृत्ति १.८२८; बृहत्कल्पसत्र २.१; प्रज्ञापना १.२३; व्याख्याप्रज्ञप्ति ६.७ । व्यवहारभाष्य १, पृ० १३२ में अणु, प्रियंगु. अकुष्ठक, श्राढकी और कलाय के स्थान पर रालग, मास, चवल, तुवरी और निष्पाप
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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