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तृ० खण्ड] पहला अध्याय : उत्पादन
१२१ हल चलाने को स्फोटकर्म ( फोडीकम्म ) कहा है। इसे १५ कर्मादानों में गिना गया है। चम्पा नगरी की सेतुसीमा बुद्धिमान और कुशल कृषकों द्वारा सैकड़ों-हजारों हलों से जोती जाती थी, और ये लोग ईख, जौ और चावल की खेती करते थे। किसी गांव में रहने वाले पाराशर गृहपति का उल्लेख है। कृषि में कुशल होने के कारण वह कृषि-पाराशर कहा जाता था। वाणिज्यग्राम के आनन्द गृहपति की धनसम्पत्ति में ५०० हलों की गिनती की गयी है; एक हल के द्वारा सौ निवर्तन (नियत्तण = ४०,००० वर्ग-हाथ ) भूमि जोती जा सकती थी। जैनसूत्रों में हल, कुलिय" और नंगल नाम के हलों का उल्लेख मिलता है।६ कुदाली ( कुदाल) से खोदने का काम किया जाता था । खेतों की रक्षा करने के लिए कृषक-बालिकाएँ "टिट्टि' 'टिट्टि' चिल्लाकर बछड़ों और हरिण आदि को, तथा लाठी मारकर सांडों को भगाया करती थीं। सूअर आदि जङ्गली जानवरों से खेती की रक्षा के लिये सींग बजाया जाता था। ऋजुवालिका नदी के किनारे श्यामाक गृहपति के कट्ठकरण नामक खेत में भगवान् महावीर को केवलज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
खेतों की फसल प्राचीन भारत में चावल (शालि) की खेती बहुतायत से होती थी। कलमशालि' पूर्वीय प्रान्तों में पैदा होता था। इसकी बलि देवी
१. उपासकदशा १, पृ० ११ । २. औपपातिक सत्र १; आवश्यकटीका (हरिभद्र) ६४७, पृ० ४२६-श्र । ३. उत्तराध्ययनटीका २, पृ० ४५ । । ४. उपासकदशा १, पृ० ७।
५. सौराष्ट्र में इसका प्रचार था। दो हाथ प्रमाण लकड़ी में लोहे की कीलें लगी रहतीं और उनमें एक लोहपट्ट जड़ा रहता। यह खेतों की घास काटने के काम में आता था, निशीथचूर्णी पीठिका ६० ।
६. आवश्यकचूणी, पृ० ८१ । ७. उपासकदशा २, पृ० २३ । ८. बृहत्कल्पभाष्य पीठिका ७७ । ६. निशीथचूर्णी पीठिका १२ । -- ...... १०. आवश्यकचूर्णा, पृ० ३२२ । ११. उपासकदशा १, पृ०.८; बृहत्कल्पभाष्य २.३३६८।।