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________________ १२० जैन श्रागम साहित्य में भारतीय समाज ---- [तृ• खण्ड और केतु नामके दो भागों में विभक्त किया गया है। सेतु को रहट आदि के जल से सींचा जाता है, जबकि केतु में वर्षा के जल से धान्य की उत्पत्ति होती है।' सिंचाई के लिए बहुत से उपाय काम में लिए जाते थे। उदाहरण के लिए, लाट देश में वर्षा से, सिन्धु देश में नदी से, द्रविड़ देश में तालाब से, उत्तरापथ में कुओं से और डिभरेलक (?) में महिरावण (?) की बाढ़ से खेतों की सिंचाई की जाती थी। कानन द्वीप (?) में नावों पर धान्य रांपे जाते थे; मथुरा में खेतो नहीं होती थी, वहाँ बनिज-व्यापार की ही प्रधानता थी। कहीं किसान लोग नाली ( सारणी) के द्वारा बारी-बारी से अपने खेतों को सींचते थे। वे छिपकर भी अपने खेतों में पानी दे लेते थे। खेती के लिए वर्षों का होना आवश्यक था । उद्घात (काली भूमि) और अनुरात ( पथरीली भूमि ) नाम की भूमि बताई गई है । कालो भूमि में अत्यधिक वर्षा होने पर भी पानी वहों का वहीं रह जाता था, बहता नहीं था।" ___ हलों में बैल जोतकर खेती की जाती थी। ठीक समय पर हल जोतने (किसिकम्म) से बहुत अच्छी खेती होती थी।६ जंगलों को जलाकर खेती करते थे। प्राचीन काल में हलदेवता के सम्मान में सीतायज्ञ (सीताजन्न) नाम का उत्सव मनाया जाता था। खत में १. वही १.८२६ । २. वही १.१२३६ । ३. निशीथचूर्णी, पीठिका ३२६ । ४. आवश्यकचूर्णी २, पृ० ७७ । ५. बृहत्कल्पभाष्य पोठिका ३३८ । ६. उत्तराध्ययनटीका १, पृ० १० अ। ७. बृहत्त्कल्पभाष्य ४.४८६१। ८. बृहत्कल्पभाष्य १.३६४७ । गृह्यसूत्रों ( उदाहरण के लिये, गोभिल ४.४.२८ इत्यादि, सेक्रेड बुक्स ऑव ट ईस्ट, जिल्द ३० में सीता को हलदेवता कहा है, वी० एम० श्राप्टे, सोशल एण्ड रिलीजियस लाइफ इन द गृह्यसूत्राज़, १०, पृ० १२६ । तथा देखिये महाभारत ७.१०५.१६; रामायण १.६६.१४ आदि; सिलवन लेवी, प्री-आर्यन और प्री-द्रविडियन इन इण्डिया,, पृ०८-१५।
SR No.007281
Book TitleJain Agam Sahitya Me Bharatiya Samaj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchadnra Jain
PublisherChaukhambha Vidyabhavan
Publication Year1965
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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