________________
छठा अध्याय स्थानीय शासन
गाँव-शासन की इकाई प्राचीन भारत में ग्राम शासन की इकाई समझी जाती थी। आजकल की भाँति उन दिनों भी जन-समुदाय गाँवों में हो रहा करता था। ये गांव इतने पास-पास होते कि एक गाँव के मुगे अथवा साँड दूसरे गाँव में बड़ी आसानी से आ-जा सकते थे (कुक्कुड़संडेयगामपउरा)। नगर अथवा राजधानी की भाँति किलेबन्दो यहाँ नहीं रहती थी। उत्तरापथ में, मथुरा नगरी के साथ ९६ गाँव लगे हुए थे। गाँव की सीमा बताते हुए कहा गया है : (क) जहाँ तक गायें चरने जाती हों, (ख ) जहाँ से घसियारे अथवा लकड़हारे घास और लकड़ी काट कर शाम तक लौट आते हों, (ग) जहाँ तक गाँव को सीमा निर्धारित की गयी हो, (घ) जहाँ गाँव का उद्यान हो, (ङ) जहाँ गाँव का कुंआ हो, (च) जहाँ देवकुल स्थापित हो और (छ) जहाँ तक गाँव के बालक क्रीड़ा के लिए जाते हों। यहाँ उत्तानकमल्लकाकार, अवाङ मुखमल्लकाकार, संपुटमल्लकाकार, खण्डमल्लकाकार, उत्तानकखण्डमल्लकसंस्थित, अवाङ मुखखण्डमल्लकसंस्थित, संपुटकखण्डमल्लकसंस्थित, पडलिकासंस्थित, वलभीसंस्थित, अक्षयपाटकसंस्थित, रुचकसंस्थित और काश्यपसंस्थित नाम के गाँव बताये हैं।'
गाँवों में यद्यपि विभिन्न वर्ण और जातियों के लोग रहते थे, लेकिन कतिपय ग्रामों में मुख्यतया एक ही जाति अथवा पेशेवाले रहा
१. राजप्रश्नीयसूत्र १, पृ० ४। जिन गाँवों के आसपास बहुत दूर तक कोई गॉव न हो उसे मडंब कहा गया है; बृहत्कल्पभाष्यटीका १.१०८६ ।
२. बृहत्कल्पभाष्य १.१७७६ । ___३. वही ११०३-११०८। कौटिल्य, अर्थशास्त्र २.१.१६.२ में बताया है कि जहाँ शूद्र और किसान ही प्रायः अधिक हों, ऐसे कम-से-कम सौ घरवाले और अधिक से अधिक पांच सो घरवाले गाँव को बसाये । इन गाँवों में एक या दो कोस का अन्तर होना चाहिए। .