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जैन अागम साहित्य में भारतीय समाज करते थे । उदाहरण के लिए, वैशालो नगरी तीन भागों में विभक्त थीबंभणगाम, खत्तियकुण्डग्गाम और वाणियगाम; इनमें क्रम से ब्राह्मण, क्षत्रिय और वणिक् लोगों का निवास था। कुछ गाँवों में मुख्यतया मयूर-पोषक' (मयूरों को शिक्षा देनेवाले ) अथवा नट' रहा करते थे। चोरपल्लि में चोर रहते थे। सीमाप्रान्त के गाँव प्रत्यन्तग्राम ( पच्चंतगाम ) कहलाते थे, जो उपद्रवों से खाली नहीं थे। कभी-कभी पड़ौसी गाँवों में मारपीट होने पर लोगों की जान चली जाती थी।
गाँव का प्रधान गाँवों के मध्य भाग में सभागृह होता था जहाँ गाँव के प्रधान पुरुष आराम से बैठ सकते थे । यहाँ लोग महाभारत आदि का पठन
और श्रवण किया करते थे। गाँव के प्रधान भोजिक कहे जाते थे। किसी राजा ने एक भोजिक से प्रसन्न होकर उसे ग्राम-मण्डल प्रदान कर दिया। ग्रामवासी भोजिक की सरलता से बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने उससे निवेदन किया कि अब हम पीढ़ी दर पीढ़ी तक आपके सेवक बन गये हैं, अतएव कृपा करके हमारे टैक्स में कमी कर दीजिये । भोजिक ने स्वीकृति दे दी। लेकिन धीरे-धीरे ग्रामवासियों ने उसका सन्मान करना छोड़ दिया। इस पर रुष्ट होकर भोजिक ने उन सबको दण्डित किया।
१. उत्तराध्ययनटीका ३, पृ० ५७ । २. आवश्यकचूर्णी, पृ० ५४४ ।
३. आवश्यकचूर्णी २, पृ० १६८। तुलना कीजिए चुल्लनारद जातक (४७७ ), पृ० ४२१ के साथ ।
४. निशीथभाष्य १३.४४०१-२ । ५. बृहत्कल्पभाष्य १.१०६६ आदि; अनुयोगद्वारटीका, सूत्र १६, पृ०२१ । ६. बृहत्कल्पभाष्य १.२१६६ । ७. वही ३.४४५८ ।