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जैन आगम साहित्य में भारतीय समाज
गाँवों तक फैला हुआ था। यहाँ इक्काई नाम का राष्ट्रकूट ( राठौड ) रहा करता था, जो खेत, गाय आदि पर लगाये हुए कर, भर ( सीमाशुल्क ), व्याज, रिश्वत, पराभव, देय ( अनिवार्य कर ), भेद्य ( दण्डकर ), कुंत ( तलवार के जोर से ), लंछपोष (लंछ नामक चोरों को नियुक्त करके), आदीपन ( आग लगवा कर ), और पंथकोट्ट ( राहगीरों को कत्ल कराकर ) द्वारा प्रजा का उत्पीड़न और शोषण किया करता था । "
१. विपाकसूत्र १, पृ० ७।